जानिए प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े सामान्य मिथक और तथ्य - डॉ. थंगराजन राजकुमार

Update: 2024-09-06 08:50 GMT

प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों की एक आम समस्या है, जिससे अनेक मिथकें और भ्रांतियाँ जुड़ी हुई हैं, जिनकी वजह से लोग चिंता और भ्रम का शिकार हो जाते हैं। कई लोग तो इन प्रचलित भ्रांतियों पर भरोसा करके गलत निर्णय भी ले लेते हैं।

इसलिए प्रोस्टेट कैंसर से जुड़ी आम मिथकों को दूर करना और इसके तथ्यों के बारे में बताया जाना बहुत आवश्यक है ताकि लोग अपने स्वास्थ्य के बारे में सही निर्णय ले सकें।

मिथक 1: अगर मेरे रिश्तेदार को बीआरसीए2 जीन म्यूटेशन है, तो मुझे प्रोस्टेट कैंसर जरूर होगा

सत्यः बीआरसीए2 जैसे जीन म्यूटेशन होने पर प्रोस्टेट कैंसर होने का जोखिम बढ़ तो जाता है, पर जरूरी नहीं कि आपमें वो म्यूटेटेड जीन्स आएं। अभिभावक से बीमारी करने वाले जीन आपमें आने की संभावना 50 प्रतिशत होती है। यदि यह म्यूटेशन आपमें आ भी जाए, तब भी जरूरी नहीं कि आपको प्रोस्टेट कैंसर होगा ही।

अध्ययनों में सामने आया है कि जिन लोगों को बीआरसीए2 म्यूटेशन होता है, उनमें से कुछ ही लोग प्रोस्टेट कैंसर का शिकार होते हैं। उन्हें यह बीमारी होने का जोखिम 20 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच होता है।

मिथक 2: यदि मुझे अपनी माँ से बीमारी करने वाला म्यूटेशन मिला है, तो मुझे फौलो अप करने की जरूरत नहीं

सत्यः यदि आपको उच्च जोखिम वाला जीन, जैसे बीआरसीए2 अपनी माँ से भी मिला है, तब भी आपको नियमित फौलो अप करते रहना चाहिए। उच्च जोखिम वाले जीन जैसे बीआरसीए2 से प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

इस बीमारी को शुरुआती चरण में ही पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र से ही डिजिटल रेक्टल परीक्षण (डीआरई) और प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए) कराते रहना चाहिए।

शुरुआत में ही पकड़ में आ जाने पर प्रोस्टेट कैंसर का अच्छी तरह से और सफल इलाज करना संभव हो जाता है।

मिथक 3: एडवांस्ड प्रोस्टेट कैंसर यानि फौरन मौत

सत्यः एडवांस्ड प्रोस्टेट कैंसर का निदान मतलब एक गंभीर बीमारी का निदान है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मरीज की मौत का समय आ गया। आज ऐसी प्रभावशाली विधियाँ उपलब्ध हैं, जो लंबे समय तक इस बीमारी को नियंत्रण में रख सकती हैं। साथ ही अगर, यह दोबारा लौट आए, तो इलाज की वैकल्पिक विधियाँ भी मौजूद हैं।

कुछ आधुनिक डायग्नोस्टिक विधियों में विशेष जेनेटिक मार्कर, जैसे होमोलोगस रिकॉम्बिनेशन रिपेयर (एचआरआर) डेफिशियंसी की पहचान हो सकती है। यदि एचआरआर डेफिशियंसी मौजूद है, तो पीएआरपी इन्हिबिटर्स, जैसे ओलापैरिब जैसी दवाईयों से केंद्रित इलाज किया जा सकता है।

साथ ही, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी अन्य जीन्स के म्यूटेशन को पहचान सकती हैं, जिससे इलाज के अतिरिक्त विकल्प प्राप्त हो सकते हैं।

मिथक 4: वेट एंड वॉच का मतलब है प्रोस्टेट कैंसर को नजरंदाज करना

सत्यः ‘वेट एंड वॉच’ और ‘एक्टिव सर्वियलेंस’ प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में एक प्रभावशाली रणनीति है, खासकर जब बीमारी कम जोखिम वाले चरण में हो। इन विधियों में कैंसर नजरंदाज नहीं होता है, बल्कि इसका सावधानीपूर्वक निरीक्षण होता है।

यदि किसी की अनुमानित जीवन की प्रत्याशा 10 साल के अंदर हो, या उसे अन्य समस्याएं, जैसे हृदय रोग या किडनी रोग हों, जो जानलेवा बनने की संभावना ज्यादा हो, तो लो-रिस्क वाले प्रोस्टेट कैंसर का गहनता से इलाज करना उतना जरूरी नहीं होता क्योंकि इससे उनके जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।

एक्टिव सर्वियलेंस में मरीज की स्थिति पर डीआरई और पीएसए टेस्ट द्वारा नजर रखी जाती है। यदि पीएसए लेवल में ज्यादा वृद्धि होती है, तो बायोप्सी जैसे अन्य परीक्षण कराए जा सकते हैं। इसमें शुरुआती चरण में हो रही प्रगति को पहचानने और उसी के अनुरूप इलाज करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

संक्षेप में, प्रोस्टेट कैंसर के तथ्यों और अपनी व्यक्तिगत स्थिति को समझना बहुत आवश्यक होता है, जिससे अपने स्वास्थ्य के बारे में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है। जहाँ अनुवांशिक और मेडिकल कारणों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, वहीं समय पर पहचान, इलाज में हुई प्रगति और व्यक्तिगत दृष्टिकोण से इलाज के परिणामों में काफी सुधार किया जा सकता है।

प्रोस्टेट कैंसर के बारे में कोई शंका या सवाल होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, जो विशेष स्थिति के अनुरूप व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ लड़ाई में जागरुकता एक शक्तिशाली टूल है।

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