कामकाजी महिलाओं में बढ़ रहा है हड्डियों का स्वास्थ्य संकट: विशेषज्ञों की चेतावनी

Update: 2025-11-25 06:00 GMT

पुणे: 20 से 40 साल की उम्र की महिलाओं में हड्डियों की समस्याएं पहले ही दिखाई देने लगी हैं। पहले इसे केवल मेनोपॉज़ के बाद की समस्या माना जाता था, लेकिन अब ऑस्टियोपोरोसिस और विटामिन D की कमी बहुत पहले ही पता चल रही है। कामकाजी महिलाओं के लिए हड्डियों का स्वास्थ्य प्राथमिकता होना चाहिए, क्योंकि बैठकर काम करना, धूप का कम होना, तनाव और अनियमित खान-पान अब मुख्य खतरे बन गए हैं। कई महिलाएं नियमित चेक-अप भी नहीं करातीं और लक्षणों को अनदेखा कर देती हैं, जब तक कि फ्रैक्चर या लगातार दर्द जैसी समस्याएं सामने नहीं आ जातीं। इसलिए महिलाओं को अपनी सेहत की जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिए और डॉक्टर की सलाह का पालन करना चाहिए।

वर्तमान में, कामकाजी महिलाओं को न केवल तनाव, वजन बढ़ना, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि हड्डियों से जुड़ी समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं।

डॉ. अनुप गाडेकर, ऑर्थोपेडिक सर्जन, अपोलो स्पेक्ट्रा पुणे के मुताबिक, “कई कामकाजी महिलाओं को हड्डियों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे शुरुआती ऑस्टियोपोरोसिस, विटामिन D की कमी और जोड़ों का दर्द। लंबे समय तक बैठना और गलत बैठने की आदत इसके मुख्य कारण हैं। इसके अलावा, धूप न लेना, भोजन छोड़ना, ज्यादा कैफीन लेना और कैल्शियम की कमी भी हड्डियों को कमजोर करती हैं।

कामकाजी महिलाएं अक्सर लंबे समय तक ऑफिस या इनडोर रहती हैं, जिससे विटामिन D की कमी हो जाती है। 45 साल से कम उम्र की लगभग 40% महिलाएं ओपीडी में घुटने और पीठ के लगातार दर्द, थकान और मुद्रा संबंधी समस्या की शिकायत लेकर आती हैं। और चिंता की बात यह है कि 25–35 साल की हर तीसरी महिला में हड्डियों की घनता कम या विटामिन D की कमी पाई जा रही है, जो युवा महिलाओं के लिए एक छिपा हुआ स्वास्थ्य संकट है।

सामान्य लक्षणों में पीठ और घुटने में दर्द, जकड़न और थकान शामिल हैं। यदि इसे नजरअंदाज किया जाए, तो बार-बार फ्रैक्चर, शरीर की मुद्रा में बदलाव और चलने-फिरने में लंबी अवधि की परेशानी हो सकती है। इसलिए, हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए समय पर जांच, संतुलित आहार और रोज़ाना हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधि बहुत जरूरी है।”

डॉ. गाडेकर ने आगे कहा, “हड्डियों की समस्या का जल्दी पता लगाने के लिए बोन डेंसिटी टेस्ट जैसी जांच और कुछ आसान जीवनशैली बदलाव बहुत मददगार हो सकते हैं। संतुलित आहार, सुबह की सैर और नियमित व्यायाम से बड़ा फर्क पड़ता है। हड्डियों का स्वास्थ्य सिर्फ उम्र का मामला नहीं है, बल्कि जागरूकता और रोज़ाना देखभाल से जुड़ा है।

इसलिए नियमित रूप से विटामिन D और कैल्शियम की जांच करवाना, सही बैठने की आदत अपनाना और आहार में दूध, दही, पत्तेदार सब्जियां, मेवे और मछली शामिल करना जरूरी है। वॉकिंग, योग या स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जैसे वजन उठाने वाले व्यायाम हड्डियों की ताकत बढ़ाने में बहुत मदद करते हैं। यह सही समय है कि महिलाएं अपनी हड्डियों के स्वास्थ्य पर ध्यान दें, सक्रिय रहें और जीवन की गुणवत्ता सुधारें।”

डॉ. दीपक गौतम, कंसल्टेंट जॉइंट रिप्लेसमेंट और डायरेक्टर, ऑर्थोपेडिक डिसिप्लिन, मेडिकोवर हॉस्पिटल्स, नवी मुंबई के अनुसार, “हड्डियों की समस्याएं जैसे जोड़ दर्द, जकड़न और ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण — पीठ दर्द, झुकी हुई मुद्रा और फ्रैक्चर — जो पहले केवल मेनोपॉज़ के बाद देखे जाते थे, अब युवा महिलाओं में भी दिखाई देने लगे हैं। हड्डियों की समस्याओं के मुख्य कारण खराब आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, विटामिन D की कमी और लंबे समय तक बिना धूप के काम करना हैं।

इन समस्याओं से बचाव के लिए महिलाओं को कैल्शियम युक्त आहार जैसे पत्तेदार सब्जियां, मेवे, सोयाबीन, टोफू शामिल करना चाहिए, नियमित व्यायाम करना चाहिए, दिन में कम से कम 20 मिनट धूप में रहना चाहिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित बोन डेंसिटी चेक-अप कराना चाहिए।”

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