लॉन्ग पेपर में मिला कोलन कैंसर के उपचार का असरदार प्राकृतिक कम्पाउंड: एनआईटी राउरकेला
राउरकेला:राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (एनआईटी राउरकेला) के शोधकर्ताओं ने लॉन्ग पेपर (पिप्पली/तिप्पिली/मघौन) में एक विशिष्ट प्राकृतिक कम्पाउंड (यौगिक) की पहचान की है जो कोलन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने का कारगर और सस्ता माध्यम साबित हुआ है। कोलन कैंसर एक जानलेवा बीमारी है जिसमें बड़ी आंत की कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और ट्यूमर (गांठ) बनाती हैं।
यह अनुसंधान एक निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल बायोफैक्टर्स में प्रकाशित हुए हैं। इस शोध पत्र के सह-लेखक, एनआईटी राउरकेला के जीवन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर, प्रो. बीजेश कुमार बिस्वाल तथा उनके शोधार्थी श्री राजीव कुमार साहू, सुश्री स्तुति बिस्वाल, श्री सम्बित कुमार पात्र और सुश्री शिक्षा स्वरूपा पंडा हैं।
यह कार्य डॉ. सूर्य कांत त्रिपाठी (यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, अमेरिका) तथा श्री कृष्णेंदु बारिक और डॉ. अनिल कुमार (सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार) के सहयोग से किया गया है। वैश्विक स्तर पर, कोलन कैंसर सबसे आम प्रकार के कैंसरों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में कोलन कैंसर के लगभग 19 लाख नए मामले और करीब 9 लाख मौतें दर्ज की गईं।
आम तौर पर कैंसर का उपचार कीमोथेरेपी से किया जाता है जिसके दर्दनाक होने के साथ साथ दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी होते हैं, जिनमें बाल झड़ना, थकान, तंत्रिका क्षति और कमजोर प्रतिरक्षा शामिल हैं। इसके अलावा, कैंसर उपचार प्रक्रिया की एक अन्य गंभीर समस्या यह है कि कैंसर कोशिकाएँ कीमोथेरैपी दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेती हैं।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान अध्ययनों ने प्राकृतिक अणुओं की विभिन्न प्रकार के कैंसरों पर प्रभावशीलता की जाँच की है, लेकिन कोलोरेक्टल कैंसर पर उनके प्रभाव का व्यापक रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
इस संदर्भ में, एनआईटी राउरकेला के नेतृत्व में बहु-संस्थागत शोध टीम ने प्रयोगशाला में कई प्रयोग किए, जिनमें उन्होंने “पाइपरलॉन्ग्यूमीन” नामक एक प्राकृतिक यौगिक की गतिविधि को कीमोथेरपी के विकल्प के रूप में प्रदर्शित किया। शोध टीम ने पाया कि यह यौगिक विशेष रूप से कोलन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है, जबकि स्वस्थ कोशिकाएँ अप्रभावित रहती हैं।
शोध टीम ने MTT ऐसे (MTT assay) के माध्यम से पाइपरलॉन्ग्यूमीन से उपचारित कोलन कैंसर कोशिकाओं की जीवित रहने की क्षमता की जाँच की और पाया कि केवल कैंसर कोशिकाएं नष्ट हुई हैं। उन्होंने इन परिणामों को कई परीक्षणों के माध्यम से सत्यापित किया, जिनमें एपोप्टोटिक इंडक्शन, केंद्रक क्षतिग्रस्त, और माइटोकॉन्ड्रियल डिसफंक्शन शामिल हैं।
इसी के साथ शोधकर्ताओं ने बताया कि पाइपरलॉन्ग्यूमीन कोलन कैंसर कोशिकाओं के अंदर ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ा देता है, जिसे यह कोशिकाएँ संभाल नहीं पातीं और परिणामस्वरूप स्वयं नष्ट हो जाती हैं। हालांकि, सामान्य कोशिकाएँ प्रभावित नहीं होतीं क्योंकि वे इस तनाव को आसानी से नियंत्रित कर लेती हैं। अध्ययन के निष्कर्षों पर बात करते हुए, एनआईटी राउरकेला के जीवन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर, प्रो. बीजेश कुमार बिस्वाल ने कहा, “लॉन्ग पेपर से प्राप्त यह प्राकृतिक कम्पाउंड अत्यंत प्रभावी कैंसर-रोधी क्षमता दिखाता है, और इसके दुष्प्रभाव भी बहुत कम हैं, जिससे यह एक आशाजनक और सुरक्षित वैकल्पिक उपचार बन सकता है।
समय के साथ, कई कैंसर रोगी कीमोथेरपी का प्रभाव खो देते हैं, यानी उपचार काम करना बंद कर देता है, जिससे मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। अगले चरण में, हमारी टीम पाइपरलॉन्ग्यूमीन को ऑक्सालिप्लाटिन जैसी कीमोथेरैपी दवाओं के साथ उपयोग करने की संभावना की जाँच कर रही है, ताकि रोगियों में उपचार के प्रति संवेदनशीलता को बहाल किया जा सके। यह खोज उन्नत और कीमो-प्रतिरोधी कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार के लिए नए अवसर खोलती है, जहाँ वर्तमान उपचार विकल्प सीमित हैं।”
यह अध्ययन घरेलू रसोई, आयुर्वेदिक प्रथाओं और पारंपरिक चिकित्सा में उपलब्ध प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करके कैंसर उपचार को बढ़ावा देता है। यह बहु-संस्थागत शोध कोलन कैंसर के उपचार के लिए सतत और किफायती समाधान विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होता है और विश्वभर में रोगियों के उपचार परिणामों में सुधार की संभावना को मजबूत करता है।