ब्लड प्रेशर बढ़ने से पहले ही दिमाग को पहुंचता है नुकसान — वील कॉर्नेल की नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा
हाई ब्लड प्रेशर को अक्सर “साइलेंट किलर” कहा जाता है — लेकिन अब वैज्ञानिक इसे “साइलेंट ब्रेन अटैकर” भी कह रहे हैं। वील कॉर्नेल मेडिसिन (Weill Cornell Medicine) के शोधकर्ताओं की एक नई स्टडी, जो Neuron जर्नल में प्रकाशित हुई है, बताती है कि हाइपरटेंशन दिमाग की कोशिकाओं को उस समय से नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है जब ब्लड प्रेशर अभी सामान्य होता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ने से पहले ही बदलने लगती हैं दिमागी कोशिकाएँ
शोध में वैज्ञानिकों ने चूहों पर एंजियोटेंसिन-II नामक हार्मोन के ज़रिए ब्लड प्रेशर बढ़ाने की प्रक्रिया बनाई। परिणाम चौंकाने वाले थे — सिर्फ तीन दिन में, जब ब्लड प्रेशर अभी बढ़ा भी नहीं था, वैज्ञानिकों ने पाया कि दिमाग की कोशिकाओं में जीन स्तर पर बदलाव शुरू हो गया था।
सबसे ज़्यादा असर तीन तरह की कोशिकाओं पर पड़ा —
1. एंडोथेलियल कोशिकाएं (जो रक्त-वाहिकाओं की परत बनाती हैं)
2. इंटरन्यूरॉन
3. ओलिगोडेंड्रोसाइट्स
इनमें ऊर्जा उत्पादन घट गया, मस्तिष्क की सुरक्षा परत यानी ब्लड-ब्रेन बैरियर कमजोर पड़ गई और कोशिकाएँ पहले ही बूढ़ी होने लगीं।
डॉक्टरों के लिए नई चेतावनी
मुख्य शोधकर्ता डॉ. कॉस्टेंटीनो आयडेकोला (Costantino Ladecola) के अनुसार: “हमने दिमाग में बदलाव उस समय देखे जब ब्लड प्रेशर बढ़ने लायक भी नहीं हुआ था। इसका मतलब है कि दिमाग पहले से तनाव महसूस करता है — यानी हमें दिमाग की सुरक्षा पर ध्यान ब्लड प्रेशर बढ़ने से पहले ही देना होगा।”
इलाज की दिशा में नया रास्ता
इस रिसर्च से साफ है कि हाइपरटेंशन सिर्फ दिल या धमनियों की बीमारी नहीं है — यह दिमाग को भी चुपचाप नुकसान पहुंचाता है। अगर इसे समय रहते रोका नहीं गया, तो आगे चलकर डिमेंशिया, अल्ज़ाइमर या स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि इस शोध में लोसार्टन (Losartan) नाम की आमतौर पर दी जाने वाली दवा ने मस्तिष्क की कोशिकाओं को हुए शुरुआती नुकसान को कम करने में मदद की। यानी भविष्य में ऐसी दवाओं पर रिसर्च की जा सकती है जो दिल और दिमाग — दोनों की सुरक्षा करें।
नतीजा क्या है?
यह अध्ययन दिखाता है कि हाइपरटेंशन एक मल्टी-सिस्टम बीमारी है, जो शरीर के कई अंगों पर असर डालती है — और सबसे पहले दिमाग पर। डॉक्टरों के लिए इसका संदेश साफ है: सिर्फ ब्लड प्रेशर मापना काफी नहीं, दिमाग की सेहत पर भी निगरानी जरूरी है। “हाइपरटेंशन को सिर्फ कार्डियोवैस्कुलर रोग की तरह न देखें,” डॉ. आयडेकोला ने कहा। “दिमाग सबसे पहले इस दबाव को महसूस करता है — भले ही ब्लड प्रेशर मीटर कुछ और बताए।”