इंटरमिटेंट फास्टिंग से नहीं घटती सोचने की क्षमता, नई स्टडी में दावा

Update: 2025-11-12 11:30 GMT

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के एक नए शोध के मुताबिक, नाश्ता छोड़ना या इंटरमिटेंट फास्टिंग करना ज़्यादातर लोगों की मानसिक एकाग्रता या सोचने की क्षमता को प्रभावित नहीं करता।

इंटरमिटेंट फास्टिंग का मतलब है कुछ घंटों या कभी-कभी एक-दो दिन तक खाना न खाना

आजकल यह एक लोकप्रिय खानपान की आदत बन गई है, क्योंकि माना जाता है कि इससे ब्लड शुगर (इंसुलिन) बेहतर रहता है, शरीर की कोशिकाएँ खुद को रिपेयर करती हैं, और वज़न नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। 

हालाँकि पिछले कुछ सालों में फास्टिंग (उपवास) एक ट्रेंड बन गया है लेकिन इसे लेकर एक आम चिंता भी देखी जाती है — जैसे लोग अक्सर कहते हैं, “भूखे रहने पर इंसान वैसा नहीं रहता जैसा वह सामान्य रूप से होता है।”

यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैंड के डॉ. डेविड मोरो (David Moreau, PhD), जो इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं, कहते हैं — “काम और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दिमाग का ठीक से काम करना बहुत ज़रूरी है। इसी वजह से यह समझना भी ज़रूरी है कि भूखे रहने या फास्टिंग करने से दिमाग पर क्या असर पड़ सकता है। इन संभावित प्रभावों की सावधानी से जांच की जानी चाहिए।”

शोधकर्ताओं ने 71 अध्ययनों का विश्लेषण (meta-analysis) किया, जिनमें यह तुलना की गई थी कि स्वस्थ लोगों की मानसिक क्षमता पर क्या असर पड़ता है — जब वे फास्टिंग करते हैं या हाल ही में खाना खा चुके होते हैं

इन अध्ययनों में दिमाग से जुड़ी कई क्षमताओं की जांच की गई, जैसे — याद रखने की क्षमता, निर्णय लेने की गति, और प्रतिक्रिया देने की क्षमता। कुल मिलाकर इस विश्लेषण में 3,484 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। ज़्यादातर फास्टिंग अवधि कम समय की थी, जिसका औसत समय लगभग 12 घंटे था।

यह शोध “साइकोलॉजिकल बुलेटिन” (Psychological Bulletin) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया।

डॉ. डेविड मोरो ने कहा,“हमारे अध्ययन से पता चला कि कम समय तक फास्टिंग करने से दिमाग की काम करने की क्षमता पर कोई खास असर नहीं पड़ता। जो लोग फास्टिंग पर थे, उनका प्रदर्शन लगभग वैसा ही था जैसा उन लोगों का जिन्होंने हाल ही में खाना खाया था। इससे यह समझ आता है कि थोड़े समय तक खाना न खाने पर भी दिमाग सामान्य रूप से काम करता रहता है।”

हालाँकि शोध में कोई बड़ा अंतर नहीं मिला, लेकिन विशेषज्ञों ने कुछ दिलचस्प बातें नोट कीं — अगर फास्टिंग का समय 12 घंटे से ज़्यादा हो, तो सोचने और ध्यान लगाने की क्षमता में हल्की कमी देखी गई। साथ ही, अध्ययन में शामिल बच्चों पर असर ज़्यादा दिखा, जबकि बड़ों पर यह असर बहुत कम था।

डॉ. मोरो कहते हैं,“हम थोड़े हैरान थे, क्योंकि हमारे नतीजे उस आम धारणा से काफी अलग निकले, जिसमें माना जाता है कि फास्टिंग करने से सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है। हमारे अध्ययन में पाया गया कि विभिन्न मानसिक कार्यों के दौरान दिमाग का प्रदर्शन लगभग समान रहा। कई लोग सोचते हैं कि एक समय का खाना छोड़ देने से दिमाग तुरंत सुस्त हो जाता है, लेकिन हमारे विश्लेषण से ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला।”

डॉ. मोरो ने आगे बताया, “सबसे दिलचस्प बात यह थी कि फास्टिंग का असर स्थिति पर निर्भर करता है। जिन कार्यों में खाने से जुड़ी चीज़ें शामिल थीं — जैसे खाने की तस्वीरें देखना या खाने से जुड़े शब्द पढ़ना — उनमें लोगों का प्रदर्शन थोड़ा कमजोर दिखा। लेकिन जिन कार्यों में खाने से कोई संबंध नहीं था, उनमें प्रदर्शन लगभग सामान्य रहा। यानी भूख लगने पर ध्यान या दिमाग़ की ऊर्जा सिर्फ़ खाने से जुड़ी चीज़ों पर ज़्यादा केंद्रित हो जाती है, बाकी कामों में दिमाग़ सामान्य रूप से काम करता रहता है।”

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि फास्टिंग का असर उम्र के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।

उम्र ने इसमें बहुत अहम भूमिका निभाई। बच्चों में फास्टिंग के दौरान प्रदर्शन में साफ़ गिरावट देखी गई, जो पहले के उन अध्ययनों से मेल खाती है जिनमें कहा गया था कि नाश्ता करने से बच्चों की ध्यान और सीखने की क्षमता बेहतर रहती है। हमारे आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि बढ़ती उम्र के बच्चों में फास्टिंग या खाना न खाने के प्रयोगों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि उनका दिमाग़ अभी विकास के दौर में होता है और ऊर्जा की कमी का असर उन पर ज़्यादा पड़ सकता है

प्रयोगशाला के बाहर भी, डॉ. मोरो का मानना है कि इस शोध के नतीजे सार्वजनिक स्वास्थ्य और फास्टिंग से जुड़ी आदतों के लिए महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।

इस अध्ययन का मुख्य संदेश यह है कि कम समय की फास्टिंग के दौरान दिमाग़ सामान्य रूप से काम करता रहता है। यानि ज़्यादातर स्वस्थ लोग इस बात को लेकर चिंतित न हों कि थोड़े समय का फास्टिंग उनकी सोचने की क्षमता या रोज़मर्रा के काम करने की योग्यता पर असर डाल सकता है

डॉ. मोरो ने बताया, “शारीरिक रूप से फास्टिंग के दौरान शरीर में कई महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं। जब शरीर में ग्लाइकोजन (शुगर स्टोरेज) कम हो जाता है, तो शरीर ऊर्जा के लिए फैट से बनने वाले केटोन बॉडीज़ का इस्तेमाल करने लगता है। नए शोधों से यह भी संकेत मिलते हैं कि केटोन पर निर्भर रहना शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकता है, यह हार्मोन के स्तर को संतुलित करने और शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत की प्रक्रिया को सक्रिय करने में मदद करता है — जो लंबी उम्र और बेहतर स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।”

शोधकर्ताओं का मानना है कि ये नतीजे इस बात का समर्थन करते हैं कि इंटरमिटेंट फास्टिंग लोगों के लिए एक उपयोगी स्वास्थ्य तरीका हो सकता है, लेकिन इसे अपनाते समय बच्चों या बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अलग सावधानी और सलाह की ज़रूरत होती है।

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