IIT दिल्ली–AIIMS ने बनाई निगली जाने वाली कैप्सूल, छोटी आंत से सीधे जुटाएगी बैक्टीरिया के सैंपल
IIT दिल्ली और AIIMS के वैज्ञानिकों ने निगली जाने वाली माइक्रो डिवाइस बनाई है, जो बिना एंडोस्कोपी छोटी आंत से बैक्टीरिया के सैंपल ले सकती है।
IIT दिल्ली और AIIMS के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक ऐसी अनोखी इंजेस्टिबल (निगली जाने वाली) माइक्रो डिवाइस बनाई है, जो सीधे छोटी आंत से बैक्टीरिया के सैंपल इकट्ठा कर सकती है। यह तकनीक गट हेल्थ पर रिसर्च करने के लिए एक बड़ा कदम मानी जा रही है, क्योंकि अब बिना एंडोस्कोपी और बिना सर्जरी के आंत के अंदर क्या हो रहा है, उसे आसानी से समझा जा सकेगा।
हमारे शरीर में जितनी कोशिकाएँ हैं, उनमें से लगभग आधी माइक्रोब्स यानी सूक्ष्म जीव होते हैं। ये हमारे गट (आतों) में रहते हैं और पाचन, मूड, इम्यूनिटी और कई जरूरी कामों को नियंत्रित करते हैं। लेकिन अभी तक छोटी आंत में मौजूद माइक्रोब्स को सीधे स्टडी करना बहुत मुश्किल था। मौजूदा तकनीकें या तो बहुत दर्दनाक और इनवेसिव होती हैं जैसे एंडोस्कोपी, या फिर अप्रत्यक्ष, जैसे स्टूल टेस्ट, जो छोटी आंत की असली स्थिति नहीं दिखाते।
कैसे काम करती है ये नई डिवाइस?
यह डिवाइस एक छोटी गोली (कैप्सूल) की तरह है।
* इसे निगलने पर यह पेट में बंद रहती है, क्योंकि वहाँ तेज एसिडिक pH होता है।
* जैसे ही यह छोटी आंत में पहुँचती है, जहाँ pH थोड़ा कम एसिडिक होता है, डिवाइस अपने आप खुल जाती है।
* इसमें लगा इनलेट आंत का द्रव और बैक्टीरिया का सैंपल इकट्ठा कर लेता है।
* फिर यह दोबारा सील हो जाती है, ताकि सैंपल सुरक्षित रहे।
* यह डिवाइस शरीर से नैचुरली बाहर निकल जाती है और बाद में शोधकर्ता सैंपल का विश्लेषण करते हैं।
यह तकनीक अभी जानवरों पर सफलतापूर्वक टेस्ट की जा चुकी है, जिसमें चावल के दाने जितनी छोटी माइक्रो डिवाइस का इस्तेमाल हुआ था। यह पूरी तरह सुरक्षित पाई गई—किसी तरह की चोट या इंफ्लेमेशन नहीं हुआ।
IIT दिल्ली के प्रो. सर्वेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा, “हमारे शरीर में एक पूरा माइक्रोब्स का ब्रह्मांड छिपा है। जैसे अंतरिक्ष की खोज के लिए हम रोवर भेजते हैं, वैसे ही शरीर के अंदर की दुनिया को समझने के लिए ऐसी छोटी-छोटी डिवाइस की जरूरत है।” AIIMS के डॉ. सामग्र अग्रवाल के अनुसार, “छोटी आंत में मौजूद माइक्रोब्स कई बीमारियों की शुरुआत बताते हैं। अगर हम यहाँ होने वाले बदलावों को समझ लें, तो बीमारियों का पता जल्दी लगाया जा सकता है, और इलाज भी ज्यादा सटीक हो सकता है।”
शोधकर्ता अब इसे इंसानी परीक्षणों में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। मंज़ूरी मिलने के बाद यह तकनीक भारतीय मरीजों की डायग्नोसिस और उपचार में बड़ी मदद कर सकती है।