AIIMS Delhi में देश का पहला डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन वर्कशॉप: पार्किन्सन के मरीजों के लिए नई उम्मीद
AIIMS Delhi ने भारत का पहला डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (DBS) वर्कशॉप आयोजित किया, जहां देशभर के डॉक्टरों को इस उन्नत तकनीक की ट्रेनिंग दी गई। AIIMS के विशेषज्ञों ने बताया कि DBS कब ज़रूरी होता है, कितना असरदार है, और कैसे सरकारी योजनाओं की मदद से मरीज इसे आसानी से करा सकते हैं।
पार्किन्सन रोग धीरे-धीरे लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को मुश्किल बना देता है—चलना, लिखना, कप उठाना या छोटे-छोटे काम भी चुनौती बन जाते हैं। जब दवाएं असर कम करने लगती हैं, तो मरीज कंपकंपी, जकड़न और अस्थिर मूवमेंट से परेशान रहने लगते हैं। ऐसे में बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के लिए AIIMS Delhi ने 19–20 दिसंबर 2025 को देश का पहला डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (DBS) वर्कशॉप आयोजित किया।
डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन एक उन्नत तकनीक है, जिसमें दिमाग के एक छोटे हिस्से को हल्के इलेक्ट्रिक सिग्नल देकर मूवमेंट संबंधी समस्याओं को काफी हद तक कम किया जाता है। दुनिया भर में इसे पार्किन्सन रोग के कठिन चरणों में बेहद असरदार माना जाता है। लेकिन इसे देना आसान नहीं—इमेजिंग, न्यूरोसर्जरी, प्रोग्रामिंग और पोस्ट-ऑप केयर में उच्च कौशल की जरूरत होती है। AIIMS का यह वर्कशॉप इसी कौशल को मजबूत करने के लिए आयोजित किया गया।
इस वर्कशॉप में देशभर से आए 200 से ज्यादा डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। नेतृत्व किया प्रो. मंजरी त्रिपाठी (हेड, न्यूरोलॉजी विभाग) ने, साथ में वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आचल श्रीवास्तव भी शामिल रहे। AIIMS की मूवमेंट डिसऑर्डर टीम — डॉ. एलावरसी ए., डॉ. अनिमेश दास, डॉ. रूपा राजन, डॉ. दिव्या एम.आर., और डॉ. दिव्यानी — ने पूरे कार्यक्रम की अकादमिक रूपरेखा तैयार की। डॉ. एलावरसी और डॉ. अनिमेश को न्यूरोमॉड्यूलेशन और मूवमेंट डिसऑर्डर में कनाडा (लंदन) से विशेष प्रशिक्षण मिला है, जिन्हें ध्यान में रखते हुए उन्होंने शुरुआती और उन्नत दोनों स्तरों के सत्र रखे।
वर्कशॉप में AIIMS Delhi की मल्टीडिसिप्लिनरी ताकत भी साफ दिखी— न्यूरोरैडियोलॉजी टीम (प्रो. शैलेश गैikwad और प्रो. अजय गर्ग) ने जरूरी इमेजिंग सहयोग दिया। फंक्शनल न्यूरोसर्जरी टीम, जिसका नेतृत्व प्रो. सरत चंद्रा ने किया, डीबीएस इम्प्लांटेशन प्रक्रिया की ट्रेनिंग दी। न्यूरोएनेस्थीसिया टीम ने मरीजों की सुरक्षा और आराम सुनिश्चित किया।
इसके अलावा, दुनिया भर से पांच अंतरराष्ट्रीय डीबीएस विशेषज्ञ भी शामिल हुए। उन्होंने हैंड्स-ऑन डिवाइस प्रोग्रामिंग, इमेज-गाइडेड डीबीएस और केस-बेस्ड क्लिनिकल डिस्कशन पर गहन प्रशिक्षण दिया। नए डॉक्टरों के लिए खास बेसिक सत्र भी रखे गए।
इसने भारत में न्यूरोलॉजी की उन्नत सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम रखा।
डीबीएस क्यों ज़रूरी है?
जब दवाएं ठीक से काम करना बंद कर देती हैं, तब डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन मरीजों को राहत, बेहतर मूवमेंट और बेहतर जीवन-गुणवत्ता देने में मदद करता है। इसे सरल भाषा में समझाने के लिए, Health Dialogues ने AIIMS विशेषज्ञों डॉ. एलावरसी ए. और डॉ. अनिमेश दास से बातचीत की।
प्रश्न 1. डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन सुनने में जटिल लगता है—एक आम मरीज कैसे समझे कि DBS किसे और कब ज़रूरी होता है?
डॉ. अनिमेश दास: डीबीएस का निर्णय मूवमेंट डिसऑर्डर विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट करते हैं। पार्किन्सन रोग के ऐसे मरीज जिनमें दवा के उतार-चढ़ाव (motor fluctuations) बढ़ जाते हैं, उनका मूल्यांकन एक मल्टीडिसिप्लिनरी टीम द्वारा किया जाता है। उसी के बाद तय होता है कि डीबीएस सही विकल्प है या नहीं।
प्रश्न 2. डीबीएस सर्जरी को अक्सर बहुत महंगा माना जाता है—क्या यह अब भारत में अधिक किफायती हो रहा है? क्या सरकारी योजनाओं से मदद मिल सकती है?
डॉ. एलावरसी ए.: हाँ, भारत में कई राष्ट्रीय योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY), राष्ट्रीय आरोग्य निधि और कई राज्य योजनाएँ डीबीएस को कवर करती हैं। AIIMS जैसे सरकारी संस्थानों में ये योजनाएँ मरीजों को बराबरी से उपलब्ध हैं, जिससे डीबीएस ज्यादा लोगों तक पहुँच पा रहा है।
प्रश्न 3. डीबीएस के बाद मरीज की रोज़मर्रा की जिंदगी कितनी बदल सकती है? क्या वे चल-फिर सकते हैं, काम कर सकते हैं? और क्या जोखिम भी होते हैं?
डॉ. एलावरसी ए.: डीबीएस के बाद मरीज की क्वालिटी ऑफ लाइफ और motor fluctuations में काफी सुधार आता है। ज़्यादातर मरीज सर्जरी के उसी दिन चल-फिर सकते हैं, बात कर सकते हैं और खाना खा सकते हैं। लगभग पाँच दिन में डिस्चार्ज भी हो जाते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं। कुछ छोटे जोखिम हो सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञ टीम इन्हें अच्छी तरह संभाल लेती है।
वर्कशॉप ने यह संदेश दिया कि AIIMS Delhi भारत में पार्किन्सन रोगियों के लिए डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन को अधिक सुरक्षित, सुलभ और प्रभावी बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है—ताकि हर मरीज को बेहतर जीवन जीने का मौका मिल सके।