टाइफॉइड आज भी भारत के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। शहरी मलिन बस्तियों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक, यह संक्रमण बच्चों, किशोरों और वयस्कों को समान रूप से प्रभावित करता है। कई बार लोग इसे एक सामान्य बुखार मानकर नजरअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।

भारत जैसे देश, जहां स्वच्छता और सुरक्षित पेयजल की पहुंच अब भी असमान है, वहां टाइफॉइड न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर भी गंभीर दबाव डालता है।

मेरे वर्षों के अनुभव में यह साफ़ हुआ है कि जिस तरह से हमने पोलियो और चेचक जैसे संक्रमणों पर नियंत्रण पाया, उसी तरह टाइफॉइड को भी हम पीछे छोड़ सकते हैं — बशर्ते हम समय पर और व्यापक स्तर पर वैक्सीनेशन को प्राथमिकता दें।

टाइफॉइड वैक्सीन एक ऐसा साधन है जो न केवल व्यक्ति को बल्कि पूरे समुदाय को सुरक्षा प्रदान करता है। यह रोग के स्रोत को नहीं, बल्कि उसके प्रभाव को रोकता है। और रोकथाम, हमेशा इलाज से बेहतर होती है।

बहुत से माता-पिता को यह भ्रम रहता है कि अगर बच्चा साफ-सफाई रखता है, तो उसे टाइफॉइड नहीं होगा। लेकिन असलियत यह है कि यह बैक्टीरिया बेहद सूक्ष्म स्तर पर काम करता है — एक बार दूषित पानी पीने से, या कटे फल में लगे हुए बैक्टीरिया से, संक्रमण हो सकता है।

और अगर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो, तो स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है। हमने अनेक केस ऐसे देखे हैं जहां इलाज में देरी से आंतों में छेद या रक्तस्राव जैसी गंभीर स्थितियाँ पैदा हुईं।

भारत सरकार ने यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में टाइफॉइड कॉन्जुगेट वैक्सीन (TCV) को शामिल कर एक दूरदर्शी कदम उठाया है। यह वैक्सीन न केवल छोटे बच्चों को, बल्कि उन किशोरों को भी दी जा सकती है जो टाइफॉइड की दृष्टि से हाई-रिस्क जोन में रहते हैं।

एकल खुराक वाली इस वैक्सीन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह 5 से 7 साल तक की प्रभावी सुरक्षा देती है, और WHO ने भी इसे पूरी तरह सुरक्षित और उपयोगी करार दिया है।

इस संदर्भ में मेरा यह भी मानना है कि टीकाकरण केवल चिकित्सा की जिम्मेदारी नहीं है। यह अभिभावकों, शिक्षकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों और मीडिया — सबकी सामूहिक भागीदारी का मामला है।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न केवल शहरों में, बल्कि सबसे दूरदराज़ गांवों तक, हर बच्चा, हर परिवार इस वैक्सीन तक पहुंचे। वैक्सीनेशन को सिर्फ स्वास्थ्य का मामला मानने की बजाय, इसे बच्चों के पोषण, शिक्षा और समग्र विकास से जोड़कर देखना होगा।

POSHAN Abhiyaan के अंतर्गत हमारा प्रयास रहा है कि पोषण और रोग प्रतिरोधकता को एक साथ जोड़ा जाए। जब एक बच्चा कुपोषण से जूझ रहा होता है, तो उसकी रोग से लड़ने की ताकत पहले से ही कमजोर होती है।

ऐसे में अगर उसे टाइफॉइड जैसी बीमारियां घेर लेती हैं, तो उसकी रिकवरी धीमी हो जाती है, इलाज महंगा हो जाता है, और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। एक सस्ती, सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन इस चक्र को तोड़ने का सबसे सशक्त उपाय है।

मैं यह बात पूरी जिम्मेदारी से कहता हूं — जब हम एक बच्चे को टाइफॉइड वैक्सीन लगवाते हैं, तो हम केवल एक बीमारी से नहीं, एक आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता से भी उसकी रक्षा करते हैं। एक स्वस्थ बच्चा ही आगे चलकर एक सक्षम नागरिक बनता है, और टीकाकरण उसी की नींव है।

इसलिए मेरा सभी माता-पिता, शिक्षकों और नीति-निर्माताओं से निवेदन है — कृपया टाइफॉइड को हल्के में न लें। समय पर वैक्सीन लगवाएं, अपने आस-पास के लोगों को जागरूक करें, और इस संक्रमण की श्रृंखला को वहीं रोक दें, जहां यह शुरू होती है।

समय पर लगाई गई एक सुई, एक पूरे जीवन को सुरक्षित कर सकती है।

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Dr Chandrakant S Pandav
Dr Chandrakant S Pandav

Dr Chandrakant S Pandav is a public health expert and member of the National Council for India’s Nutritional Challenges under POSHAN Abhiyaan, chaired by the Vice-Chairman of NITI Aayog. He is former Professor and Head of the Centre for Community Medicine at AIIMS, New Delhi. He holds an MBBS and MD in Community Medicine from AIIMS and an MSc in Health Economics, Clinical Epidemiology, and Biostatistics from McMaster University, Canada. Dr Pandav is President of the Indian Coalition for the Control of Iodine Deficiency Disorders (ICCIDD), Regional Coordinator for the Iodine Global Network (South Asia), and Chairman of the Coalition for Food and Nutrition Security in India. Since 1983, he has worked as a consultant to WHO and UNICEF on iodine deficiency disorders in over 60 countries across South Asia, the Western Pacific, the Middle East, and Africa. His work spans areas such as micronutrient deficiencies, health systems research, health policy, health economics, and programme evaluation. He has co-edited 14 books, authored around 500 research papers, and serves on various advisory and technical committees under the Ministry of Health and Family Welfare, Ministry of Women and Child Development, ICMR, FSSAI, and other national and international bodies. He has received recognitions including the Padma Shri (2021), WHO Public Health Champion Award (2017), Mother Teresa Memorial Award (2016), and the Dr M K Seshadri Prize and Gold Medal from ICMR (2000).