छोटे बच्चों को ज्यादा स्क्रीन टाइम देना घातक- जानें पूरा सच

बच्चों में मोबाइल-टीवी का ओवरयूज दिमागी विकास, नींद और व्यवहार पर असर डालता है। जानें स्क्रीन टाइम को कैसे सीमित रखें।

Update: 2025-12-08 05:30 GMT

नई दिल्ली: आज की डिजिटल दुनिया में बच्चे बहुत कम उम्र से ही स्क्रीन के संपर्क में आने लगे हैं। मोबाइल फोन, टीवी, टैबलेट और गेमिंग डिवाइस अब बच्चों के रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। कई परिवारों में दो साल से कम उम्र के बच्चे भी वीडियो देखने या गेम खेलने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह शुरुआती स्क्रीन एक्सपोज़र बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास की गति को प्रभावित कर सकता है।

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से बच्चे वास्तविक दुनिया से जुड़ाव खोने लगते हैं। उनकी कल्पनाशक्ति, भाषा विकास और संवाद कौशल धीमे हो सकते हैं। एक स्टडी के अनुसार, 0-2 वर्ष के बच्चों में अत्यधिक स्क्रीन समय मस्तिष्क के विकास से जुड़े हिस्सों की सक्रियता घटा सकता है। इस उम्र में मानव इंटरैक्शन बच्चे के दिमाग के लिए सबसे जरूरी होता है, जबकि स्क्रीन इसे कम कर देता है।

स्क्रीन के अधिक उपयोग का असर नींद पर भी दिखता है। देर रात मोबाइल देखने या गेम खेलने वाले बच्चों को नींद आने में दिक्कत होती है। ब्लू लाइट मेलाटोनिन नामक नींद हार्मोन को प्रभावित करती है, जिससे बच्चा चिड़चिड़ा, थका हुआ और ध्यान लगाने में कमजोर हो सकता है।

स्क्रीन ओवरयूज़ के प्रमुख संकेत:

  • बातचीत में कम रुचि
  • आँखों में तनाव / पावर बढ़ना
  • ध्यान लगाने में कठिनाई
  • व्यवहार में चिड़चिड़ापन
  • बाहर खेलने की इच्छा कम होना
  • लगातार कंटेंट देखने की आदत
  • माता-पिता से कम बातचीत

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में शहरी परिवारों में बच्चे औसतन 3-4 घंटे प्रतिदिन स्क्रीन पर बिताते हैं, जबकि WHO की गाइडलाइन 2-5 वर्ष के बच्चों के लिए केवल 1 घंटे से कम स्क्रीन टाइम की सलाह देती है। इससे ज्यादा समय बच्चों के सोशल स्किल्स, मोटर डेवलपमेंट और सीखने की क्षमता को धीमा कर सकता है।

AIIMS विशेषज्ञ प्रो. राजेश सागर का कहना है कि जब बच्चे डिजिटल कंटेंट के आदि हो जाते हैं, तो उन्हें ऑफलाइन गतिविधियों में रुचि कम होने लगती है। इससे उनका एमोशनल और बिहेवियरल डेवलपमेंट प्रभावित होता है। कई बच्चे वास्तविक बातचीत, रियल प्ले और टीम इंटरैक्शन को चुनौतीपूर्ण मानने लगते हैं। इससे आगे चलकर एंग्जायटी, लो-कॉन्फिडेंस और सोशल अवॉइडेंस की स्थितियाँ पर दिखाई देती हैं।

विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि स्क्रीन सीमित समय के लिए दें और उसे इनाम के रूप में उपयोग न करें। 2 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन पूरी तरह टालना बेहतर है। उनके साथ बातचीत, कहानी सुनाना, पेंटिंग, मिट्टी से खेलना, ब्लॉक्स या आउटडोर प्ले मानसिक विकास को तेज करते हैं।

क्या करें? 

  • 2 वर्ष से कम बच्चों को नो स्क्रीन
  • बड़े बच्चों के लिए 1-2 घंटे कंट्रोल्ड स्क्रीन टाइम
  • स्क्रीन का उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिए सीमित करें
  • रात सोने से पहले 1 घंटे स्क्रीन बंद रखें
  • बच्चों को आउटडोर और ऑफलाइन गतिविधियों में शामिल करें
  • परिवार में बातचीत, स्टोरी टाइम और रीडिंग बढ़ाएं
  • डिवाइस पर पैरेंटल कंट्रोल & स्क्रीन ब्रेक रूल लागू करें

शुरुआती उम्र से डिजिटल एक्सपोज़र को समझदारी से नियंत्रित करना जरूरी है। स्क्रीन सीखने का माध्यम बन सकती है, लेकिन सीमित रूप में। संतुलित डिजिटल-फिजिकल इंटरैक्शन ही बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत, सामाजिक रूप से सक्रिय और सीखने में तेज बनाता है।

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