हर साल 'विश्व पार्किंसंस (Parkinson’s) दिवस' हमें एक साधी लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण बात याद दिलाता है – जल्दी निदान (early diagnosis) से उपचार की दिशा और परिणाम दोनों बदल सकते हैं।

फिर भी, दुनियाभर में लाखों लोगों के लिए पार्किंसंस रोग की शुरुआत इतनी सूक्ष्म लक्षणों से होती है कि इसे आसानी से उम्र बढ़ने, सामान्य थकावट (fatigue) या तनाव (stress) जैसे कारणों से जोड़ा जाता है और अनदेखा कर दिया जाता है।

इन शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय पर इलाज करवाने से रोग की गति को धीमा किया जा सकता है और मरीज की जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। आइए, कुछ ऐसे छोटे ‘रेड फ्लैग्स (red flags)’ पर नज़र डालें जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

पार्किंसंस का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले हाथों का काँपना आता है। लेकिन यह केवल एक लक्षण है — और यह अक्सर बाद में दिखाई देता है। शुरुआती लक्षण आमतौर पर अधिक अंदरूनी होते हैं — जो हमारी गति (movement), बोलचाल (speech), और भावनात्मक स्थिति (emotional state) को प्रभावित करते हैं।

1. ब्रैडीकिनेसिया (Bradykinesia) – गति धीमा होने का पहला संकेत

'ब्रैडीकिनेसिया (Bradykinesia)' यानी गति धीमा होना — यह पार्किंसंस का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रारंभिक लक्षण है।

रोगी को बटन लगाना, कुर्सी से उठना या कमरे में चलने के लिए ज्यादा समय लगता है।

चलते समय हाथों की गति में कमी आना भी एक सूक्ष्म लक्षण है, जिसे अक्सर ध्यान में नहीं लिया जाता।

2. चाल में बदलाव – सूक्ष्म लेकिन स्पष्ट संकेत

पार्किंसंस का प्रभाव चलने पर भी होता है। कुछ रोगियों की चाल छोटी और तेज़ होती है (फेस्टिनेटिंग गेट (festinating gait))। पैरों का घसीटना, छोटे कदमों से या संकोच के साथ चलना भी शुरुआती संकेत हो सकते हैं।

कभी-कभी रोगी का शरीर तिरछा या झुका हुआ रहता है, जिसे हम उम्र बढ़ने का परिणाम समझकर अनदेखा कर देते हैं।

3. हस्ताक्षर में बदलाव – मायक्रोग्राफिया (Micrographia)

मायक्रोग्राफिया (Micrographia)’ यानी हस्ताक्षर का छोटा, एकजुट और अवाचनीय (illegible) होना। पुरानी डायरी या नोट्स देखकर यह बदलाव और अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

4. मृदु आवाज और अभिव्यक्तिहीन चेहरा

पार्किंसंस के रोगियों की आवाज़ पहले की तुलना में अधिक मृदु (soft) और अस्पष्ट (unclear) हो जाती है।

परिवार के सदस्य अक्सर कहते हैं, "आवाज़ सुनाई नहीं देती।" इसके अलावा, चेहरे पर भावनाओं की अभिव्यक्ति (expression) में कमी आ जाती है, जैसे कि वह ‘मास्क’ जैसा दिखने लगता है — यह भी एक महत्वपूर्ण लक्षण है।

5. कड़कपणा – जो हम सामान्य समझते हैं

शरीर में – विशेषकर हाथ, पैर या कमर में – जो कड़कपणा (rigidity) आता है, उसे अक्सर गठिया (arthritis) या उम्र बढ़ने से जोड़ा जाता है।

लेकिन अगर यह कड़कपणा स्थायी हो, एक तरफ अधिक महसूस हो, और उपचार के बाद भी कम न हो, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

अन्य सूक्ष्म लक्षण – जो अनदेखे रह जाते हैं

  • सोते समय अधिक हलचल या सपनों में क्रियाएँ करना (आरईएम स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर – REM Sleep Behavior Disorder)
  • गंध महसूस करने की क्षमता में कमी (हाइपोस्मिया – Hyposmia)
  • निराशा (depression), चिंता (anxiety)
  • लगातार थकावट या कम ऊर्जा (low energy)
  • गिरने का डर (fear of falling)

ये सभी लक्षण मोटर सिस्टम (motor system) में कुछ गड़बड़ी का संकेत हो सकते हैं।

जल्दी निदान के फायदे

जल्दी निदान होने पर दवाइयाँ (medications), फिजियोथेरेपी (physiotherapy), काउंसलिंग (counseling) और जीवनशैली में बदलाव (lifestyle changes) से रोगी का जीवन अधिक सहनीय और सशक्त बन सकता है।

योग (yoga), ध्यान (meditation) और आहार (diet) भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। अपने शरीर में छोटे-छोटे बदलावों को पहचानें।

उनका महत्व समझें। क्योंकि, जल्दी कदम उठाने से बीमारी की पूरी यात्रा बदल सकती है।

आइए, हम और हमारे प्रियजन इन सूक्ष्म संकेतों को पहचानने और समय पर कार्रवाई करने का संकल्प लें।

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Dr Rakesh Ranjan
Dr Rakesh Ranjan

Dr Rakesh Ranjan (MBBS, MS (General Surgery), MCh (Neurosurgery) DNB (Neurosurgery)) is the Senior Director of Neurosciences and a distinguished Neurosurgeon at Aditya Birla Memorial Hospital, Pune, with over 20 years of experience. He specializes in managing complex neurosurgical conditions, with expertise in cerebrovascular neurosurgery, paediatric neurosurgery, neuro-oncology, and minimally invasive, image-guided procedures. Dr Ranjan is skilled in advanced surgical technologies including intraoperative MRI and neuronavigation, enhancing surgical precision and outcomes. He has received international recognition, including a Visiting Scholarship Award at the ISPN Meeting (2010) and a Travelling Fellowship from the Congress of Neurological Surgeons (USA, 2009). A dedicated academician, he has authored and presented over 30 scientific papers at reputed national and international conferences. He is also an active member of the Congress of Neurological Surgeons (USA), the International Society of Paediatric Neurosurgery, and the Neurological Society of India.