डायबिटीज़ के बारे में फैली गलतफहमियाँ: लोग अब भी क्या-क्या गलत समझते हैं – डॉ प्रमिला कलरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 8.3 अरब लोग डायबिटीज़ से प्रभावित हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग डायबिटीज़ (मधुमेह) से जूझ रहे हैं, लेकिन आज भी इसके बारे में कई गलत धारणाएँ लोगों के मन में हैं। इन भ्रांतियों की वजह से कई बार इलाज में देरी होती है या लोग गलत तरीके अपनाते हैं। आइए जानते हैं डायबिटीज़ से जुड़े कुछ आम मिथक और उनके पीछे की सच्चाई।
मिथक 1: बहुत शुगर खाने से सीधे डायबिटीज़ हो जाती है।
सच: हां, अत्यधिक शुगर वाला आहार वजन बढ़वा सकता है, जो टाइप-2 डायबिटीज़ का एक प्रमुख जोखिम है। लेकिन यह डायबिटीज़ का प्रत्यक्ष कारण नहीं है। टाइप-1 डायबिटीज़ एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो शुगर सेवन से संबंधित नहीं होती।
टाइप-2 डायबिटीज़ विकसित होती है—विरासत, उम्र, जीवनशैली (जैसे व्यायाम की कमी), अत्याधिक परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट या फैट युक्त आहार, और अन्य पर्यावरणीय कारणों की वजह से। शुगर का अत्याधिक सेवन इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ा सकता है और वजन बढ़ा सकता है। यह भूमिका निभाता है — लेकिन एकमात्र और प्रत्यक्ष कारण नहीं।
मिथक 2: केवल मोटे या अतिरिक्त वजन वाले व्यक्तियों को टाइप-2 डायबिटीज़ होती है।
सच: मोटापा जोखिम बढ़ाता है, पर डायबिटीज़ सिर्फ मोटे लोगों तक सीमित नहीं है। नॉर्मल या कम वजन वाले व्यक्ति भी टाइप-2 डायबिटीज़ से प्रभावित हो सकते हैं—विरासत, जातीयता, उम्र, अस्वस्थ आहार और व्यायाम की कमी की वजह से।
एक ही तरह से, हर मोटे व्यक्ति को डायबिटीज़ नहीं होती। इस मिथक को मानना अनावश्यक डर या भरोसे का झूठा अहसास दे सकता है, जो जांच और इलाज में देरी का कारण बनता है।
मिथक 3: डायबिटीज़ वाले लोगों को शुगर व कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थ पूरी तरह छोड़ देने चाहिए।
सच: यह विचार न सिर्फ़ भ्रामक है बल्कि खतरनाक भी हो सकता है। कार्बोहाइड्रेट शरीर की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। इन्हें पूरी तरह बंद करना पोषण की कमी या रक्त शुगर की गड़बड़ी का कारण बन सकता है।
डायबिटीज़ वाले व्यक्तियों का मुख्य लक्ष्य कार्बोहाइड्रेट को समझदारी से चुनना चाहिये —साधारण शुगर की बजाय जटिल कार्बोहाइड्रेट चुनें, साबुत अनाज, फल-सब्ज़ियाँ शामिल करें, उचित मात्रा में प्रोटीन लें। संतुलित आहार रोगी की जरूरत के अनुरूप डॉक्टर की सलाह से तय होना चाहिए।
मिथक 4: अगर डायबिटीज़ ‘कंट्रोल’ में है, तो यह गंभीर नहीं है।
सच: डायबिटीज़ एक गंभीर, क्रॉनिक स्थिति है, जिसे जीवन भर देखभाल की आवश्यकता होती है। अनियंत्रित या खराब प्रबंधन से दिल की बीमारी, स्ट्रोक, गुर्दा विफलता, न्यूरोपैथी, अंधापन और अंग प्रत्यारोपण जैसा खतरा हो सकता है।
सही प्रबंधन जोखिम बहुत कम करता है, लेकिन शून्य नहीं। इसे निरंतर निगरानी और अक्सर दवाओं के साथ नियंत्रित किया जाना चाहिए।
मिथक 5: अगर इंसुलिन लेना पड़ रहा है, तो यह बीमारी बहुत गंभीर है।
सच: टाइप-1 डायबिटीज़ वाले लोगों के लिए, जिनके शरीर में इंसुलिन बहुत कम या बिलकुल नहीं बनता, इंसुलिन एक जीवनरक्षक दवा है।
टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीजों में समय के साथ पैंक्रियास (अग्न्याशय) कम इंसुलिन बनाने लगता है। ऐसे में इंसुलिन थेरेपी की जरूरत कुछ समय के लिए या लंबे समय तक पड़ सकती है — खासकर तब, जब शुगर बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, शरीर में पानी की कमी हो (osmotic symptoms) या कोई संक्रमण हो।
इंसुलिन लेने से शरीर ठीक तरह से काम करता है और ब्लड शुगर सामान्य स्तर पर बनी रहती है। इसका किसी भी तरह से व्यक्तिगत कमजोरी या असफलता से कोई लेना-देना नहीं है। जब इंसुलिन की ज़रूरत हो और उसे न लिया जाए, तो इससे शरीर को नुकसान हो सकता है और आगे चलकर जटिलताएँ (complications) बढ़ सकती हैं।
इन मिथकों को दूर करना इसलिए आवश्यक है ताकि लोग इस स्थिति को बेहतर तरीके से समझें, सही स्वास्थ्य निर्णय लें।
डायबिटीज़ की सही प्रकृति को समझना हमें उन लोगों का समर्थन करने में मदद करेगा जो इस स्थिति से जूझ रहे हैं, और एक स्वस्थ-भविष्य की ओर बढ़ने में सहायक बनेगा। डायबिटीज़ को लेकर फैली गलतफहमियाँ लोगों को सही इलाज से दूर रखती हैं। जरूरी है कि लोग सही जानकारी रखें, जांच करवाएँ और डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज करें।
डर या शर्म की वजह से इलाज टालना आगे चलकर बड़ी परेशानी बन सकता है। समय पर पहचान, सही खानपान और नियमित जांच — यही है डायबिटीज़ पर जीत का असली मंत्र।
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