हॉट फ्लैश क्या हैं? पेरिमेनोपॉज़ और मेनोपॉज़ में क्या होता है?
मेनोपॉज़ में हॉट फ्लैशेज़, नींद की समस्या और हड्डियों के कमजोर होने का खतरा बढ़ता है। जागरूकता, डायट व व्यायाम से राहत संभव।
गुरुग्राम: महिलाओं की उम्र मध्य जीवन के करीब पहुँचते ही शरीर में हार्मोनल बदलाव शुरू हो जाते हैं। इसी दौरान अचानक आने वाली गर्मी की लहरें यानी हॉट फ्लैशेज़ बहुत आम लक्षण हैं। कई बार इनके साथ पसीना आना, दिल की धड़कन तेज होना या नींद में खलल जैसी समस्याएँ भी होती हैं। ये संकेत पेरिमेनोपॉज़ और मेनोपॉज़ के दौर का हिस्सा हैं।
हालाँकि हॉट फ्लैशेज़ उम्र बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया माने जाते हैं, लेकिन इनके कारण, लक्षण और बचाव समझना जरूरी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस समय जागरूकता और समय पर देखभाल महिलाओं को इस बदलाव के दौर से आराम से गुजरने में मदद कर सकती है। खास बात यह भी है कि मेनोपॉज़ से ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियाँ कमजोर होना) का खतरा बढ़ जाता है।
हॉट फ्लैशेज़ सिर्फ असहजता नहीं, बल्कि कई महिलाओं की दिनचर्या और मानसिक शांति को प्रभावित करते हैं। एस्ट्रोजन हार्मोन में उतार-चढ़ाव के कारण शरीर का तापमान नियंत्रण बिगड़ जाता है। कई महिलाओं में नाइट स्वेट्स यानी रात में अत्यधिक पसीना आता है, जिससे नींद टूटती है और थकान, चिड़चिड़ापन व वजन बढ़ने जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इसी समय हड्डियों की घनत्व भी कम होने लगता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
डायट में बदलाव, नियमित व्यायाम और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से दवा या थेरेपी लेकर हॉट फ्लैशेज़ को नियंत्रित किया जा सकता है और हड्डियों की सुरक्षा भी की जा सकती है।
मदरहुड हॉस्पिटल, गुरुग्राम की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सोनल सिंघल कहती हैं,
"शिक्षा और जागरूकता महिलाओं को पेरिमेनोपॉज़ और मेनोपॉज़ में आने वाले बदलाव समझने और संभालने में सक्षम बनाती है। समय पर पहचान और सही कदम लंबे समय तक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हैं।"
डॉ. सोनल आगे बताती हैं,
"हॉट फ्लैशेज़ के ट्रिगर्स और मैनेजमेंट जानना मेनोपॉज़ का अनुभव आसान बना सकता है। वहीं ऑस्टियोपोरोसिस को समझकर महिलाएँ सही समय पर कैल्शियम युक्त भोजन, व्यायाम और नियमित जांचों से इसे रोक सकती हैं। मेनोपॉज़ में एस्ट्रोजन कम होने से हड्डियाँ तेजी से कमजोर पड़ती हैं, जिससे फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए इस समय सही जानकारी और ध्यान बेहद महत्वपूर्ण है।"
यह जीवन का स्वाभाविक चरण है—सही जागरूकता और जीवनशैली अपनाकर महिलाएँ इसे स्वस्थ और सहज तरीके से पार कर सकती हैं।