कैंसर नहीं रुकता: समय पर जांच और स्क्रीनिंग जरूरी - डॉ. श्रीगोपाल

भारत में हर साल कई लोग कैंसर का सामना करने की मुश्किल खबर सुनते हैं, जिससे उन्हें मानसिक और भावनात्मक परेशानी का सामना करना पड़ता है। अक्सर यह बीमारी चुपचाप बढ़ती रहती है, इससे पहले कि कोई लक्षण दिखाई दें। सच्चाई यह है कि कैंसर आमतौर पर शुरुआती चेतावनी नहीं देता, लेकिन अगर समय पर पहचान हो जाए तो जीवन बचाया जा सकता है। नियमित जांच और स्वास्थ्य परीक्षण केवल मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपने और अपने परिवार की सुरक्षा का एक तरीका भी हैं।
शुरुआती पहचान क्यों ज़रूरी है
कैंसर के शुरुआती चरणों में इसका इलाज अक्सर आसान होता है और रोगी की रिकवरी बेहतर होती है। लेकिन भारत में अधिकांश कैंसर मामलों का निदान देर से होता है, जब बीमारी पहले ही बढ़ चुकी होती है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (NCRP), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, देश में कई कैंसर मामले स्टेज 3 या 4 में पाए जाते हैं। समय पर नियमित जांच से यह स्थिति बदली जा सकती है, जिससे मरीजों को अधिक उपचार विकल्प, कम जटिलताएँ और जीवित रहने का बेहतर मौका मिलता है।
सामान्य कैंसर और जांच की जरूरत
जांच खासतौर पर उन कैंसरों के लिए जरूरी है जो आम हैं और शुरुआती चरणों में पकड़े जा सकते हैं। भारत में सबसे आम कैंसरों में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, मुँह, फेफड़े और कोलोरैक्टल कैंसर शामिल हैं।
स्तन कैंसर: भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसरों में से एक। समय पर स्व- जांच, क्लिनिकल जाँच और मैमोग्राफी से रिकवरी दर में सुधार संभव है।
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: अक्सर रोकने योग्य और धीरे बढ़ने वाला, पैप स्मीयर या HPV टेस्ट से जल्दी पता लगाया जा सकता है।
मुँह का कैंसर: तम्बाकू, पान और खराब मौखिक स्वच्छता से जुड़ा। समय पर विजुअल स्क्रीनिंग से प्रीकैंसरस लक्षण पकड़े जा सकते हैं।
फेफड़े और कोलोरैक्टल कैंसर: अक्सर चुपचाप बढ़ते हैं, लेकिन जोखिम वाले लोग जैसे धूम्रपान करने वाले या परिवार में इतिहास वाले नियमित जांच कराएं।
लोग जांच में देरी क्यों करते हैं
फायदे के बावजूद, जांच अक्सर नजरअंदाज की जाती है। डर, जागरूकता की कमी, सामाजिक कलंक या यह सोच कि “मैं ठीक हूँ, तो सब सही है” जैसी मानसिकताएँ जांच में देरी का कारण बनती हैं। कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्क्रीनिंग सेंटर तक पहुंच भी मुश्किल होती है।
संकेत जिन्हें नजरअंदाज न करें
- लगातार थकान या वजन घटना
- असामान्य गांठ या सूजन
- जल्दी ठीक न होने वाले घाव
- मल या मूत्र में बदलाव
- असामान्य रक्तस्राव या लंबे समय तक खांसी
नियमित जांच से कैसे रहें आगे
वार्षिक स्वास्थ्य जांच: ब्लड टेस्ट, इमेजिंग और शारीरिक जाँच से बदलाव जल्दी पकड़े जा सकते हैं।
स्क्रीनिंग गाइडलाइन का पालन: NPCDCS के अनुसार 30 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए नियमित जांच।
टीकाकरण और निवारण: HPV और हेपेटाइटिस बी जैसी वैक्सीन से संक्रमण-जनित कैंसर रोकें।
पारिवारिक इतिहास: परिवार में कैंसर का इतिहास होने पर डॉक्टर से व्यक्तिगत स्क्रीनिंग योजना बनाएं।
परिवार और देखभाल करने वालों की भूमिका
भारतीय घरों में देखभाल करने वाले अक्सर स्वास्थ्य निर्णयों में मुख्य भूमिका निभाते हैं। उनका प्रोत्साहन तय करता है कि कोई माता-पिता चेक-अप कराए या जीवनसाथी रिपोर्ट का पालन करे। खुली बातचीत से कैंसर और जांच के बारे में कलंक कम किया जा सकता है।
समय पर कार्रवाई से जीवन बचाएँ
कैंसर तेज़ी से बढ़ता है, लेकिन जागरूकता और समय पर कदम उससे भी तेज़ हैं। शुरुआती पहचान डर नहीं, बल्कि शक्ति, दूरदर्शिता और देखभाल है। हर स्क्रीनिंग आपके स्वास्थ्य, आशा और परिवार के लिए एक अवसर है।
अपने नज़दीकी आरोग्य केंद्र या क्लिनिक में स्वास्थ्य जांच कराएँ और अपने प्रियजनों को भी प्रेरित करें। समय पर एक जांच से कहानी बदल सकती है—अनिश्चितता से रिकवरी, डर से आशा की ओर।
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