अमेरिका में 50 साल से कम उम्र के लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर तेजी से बढ़ रहा है, और इस पर डॉक्टर और शोधकर्ता काफी चिंतित हैं। अब Yale School of Public Health (YSPH) की एक नई स्टडी ने इस बढ़ते खतरे के पीछे कुछ अहम जैविक कारणों के संकेत दिए हैं।

यह स्टडी Free Radical Biology and Medicine में प्रकाशित हुई है और यह पहली रिसर्च है जिसने युवा और बुज़ुर्ग मरीजों के ट्यूमर की मेटाबोलिक तुलना इतनी गहराई से की है। परिणाम बताते हैं कि कम उम्र के मरीजों में बनने वाले ट्यूमर की बायोलॉजी अलग हो सकती है।

युवा मरीजों के ट्यूमर की बायोलॉजी अलग

स्टडी के सह-लेखक और YSPH के रिसर्चर डॉ. ओलाडिमेजी अलाडेलोकुन के अनुसार, शुरुआती उम्र में होने वाले कैंसर में “स्पष्ट रूप से अलग तरह की बायोलॉजी” दिखती है। अभी और रिसर्च की जरूरत है, लेकिन ये शुरुआती नतीजे भविष्य में उपचार को बेहतर तरीके से व्यक्तिगत (personalized) बनाने में मदद कर सकते हैं।

कोलोरेक्टल कैंसर क्या है? (Simple Hindi Explanation)

कोलोरेक्टल कैंसर वह कैंसर है जो कोलन (बड़ी आंत) या रेक्टम (मलाशय) में शुरू होता है। बड़ी आंत हमारे पाचन तंत्र का आख़िरी हिस्सा है, जहाँ भोजन का बचा हुआ हिस्सा पानी के साथ मिलकर मल बनता है।

जब आंतों की अंदरूनी परत पर मौजूद कोशिकाएँ असामान्य तरीके से बढ़ने लगती हैं और गाँठ (पॉलीप) बनाती हैं, तो धीरे-धीरे यह कैंसर का रूप ले सकता है। कई बार ये पॉलीप सालों में बढ़ते हैं और बिना लक्षणों के रहते हैं, इसलिए कोलोरेक्टल कैंसर को अक्सर देर से पता चलता है। अगर समय पर जांच हो जाए तो यह कैंसर शुरुआती चरण में आसानी से पकड़ा और इलाज किया जा सकता है।

कोलोरेक्टल कैंसर क्यों बढ़ रहा है?

कोलोरेक्टल कैंसर अमेरिका में तीसरा सबसे आम कैंसर है और मौत की बड़ी वजहों में भी शामिल है। चिंता की बात यह है कि 20–39 साल के लोगों में इसके मामले 1990 के दशक से हर साल लगभग 2% बढ़ रहे हैं।

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार, 2025 में 1,54,000 नए मामले सामने आएंगे और हर पाँच में से एक मरीज 55 साल से कम उम्र का होगा।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं:

* मोटापा

* शराब का ज़्यादा सेवन

* कम शारीरिक गतिविधि

* अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का ज़्यादा सेवन

इसके अलावा, आंतों के बैक्टीरिया, जीवनशैली और जेनेटिक फैक्टर भी भूमिका निभा सकते हैं।

मेटाबोलाइट्स पर खास ध्यान

Yale की टीम ने इस बीमारी को एक नए तरीके से समझने की कोशिश की—उन्होंने शरीर में बनने वाले छोटे केमिकल्स यानी मेटाबोलाइट्स का अध्ययन किया। डॉ. कैरोलिन जॉनसन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने 1991–2001 के बीच संरक्षित किए गए फ्रीज़ किए हुए ट्यूमर नमूनों का विश्लेषण किया।

उन्होंने पाया कि सामान्य और कैंसरग्रस्त ऊतकों के बीच 91 मेटाबोलाइट्स में बड़े बदलाव थे।

डोपामाइन से जुड़ा नया संकेत

सबसे दिलचस्प बात यह रही कि होमोवेनिलिक एसिड नाम का एक मेटाबोलाइट, जो डोपामाइन टूटने पर बनता है, युवा मरीजों के ट्यूमर में खास तौर पर कम पाया गया।

डोपामाइन से जुड़े मार्कर कई तरह के ट्यूमर की पहचान में काम आते हैं, लेकिन कोलोरेक्टल कैंसर में यह लिंक पहली बार देखा गया है।

युवा मरीजों में PD-L1 स्तर कम

स्टडी का एक और बड़ा निष्कर्ष यह था कि शुरुआती उम्र में पाए जाने वाले ट्यूमर में PD-L1 प्रोटीन का स्तर काफी कम था। यह वही प्रोटीन है जिसे कई कैंसर इम्यूनोथेरेपी दवाएं टारगेट करती हैं।

कम PD-L1 स्तर का मतलब हो सकता है कि युवा मरीजों के ट्यूमर इम्यून सिस्टम को दबाने वाला वातावरण बनाते हैं, जिससे दवाओं की प्रभावशीलता प्रभावित हो सकती है।

आगे क्या होगा?

डॉ. जॉनसन की टीम अब और बड़े समूह में नमूने इकट्ठा कर रही है ताकि इन नतीजों की पुष्टि की जा सके। वे यह भी जानना चाहते हैं कि क्या यह बदलाव रक्त परीक्षण में भी दिख सकता है, जिससे भविष्य में जांच और उपचार आसान हो सके।

फ्रीज़ किए गए ट्यूमर नमूने मिलना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए यह रिसर्च बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

यह अध्ययन भविष्य में युवा लोगों के लिए बेहतर जांच, जल्दी पहचान और अधिक प्रभावी इलाज का रास्ता खोल सकता है।

Khushi Chittoria
Khushi Chittoria

Khushi Chittoria joined Medical Dialogues in 2025 as a Media and Editorial Intern. She holds a degree in Bachelor of Arts in Journalism and Mass Communication from IP University and has completed certifications in content writing. She has a strong interest in anchoring, content writing, and editing. At Medical Dialogues, Khushi works in the editorial department, web stories and anchoring.