कोलकाता: मिज़ोरम के 78 वर्षीय एक भद्रपुरुष, जो कई महीनों से लगातार पेट और पीठ के दर्द से पीड़ित थे, ने हाल ही में मणिपाल अस्पताल, ईएम बाईपास में मुख्य धमनी में बने खतरनाक सूजन के उपचार हेतु एक अत्यंत जटिल एंडोवेस्कुलर एओर्टिक रिपेयर, अर्थात् न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया से उपचार कराया। यह जटिल प्रक्रिया मणिपाल अस्पताल, ईएम बाईपास के कैथ लैब निदेशक, वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, डिवाइस एवं स्ट्रक्चरल हार्ट विशेषज्ञ डॉ. दिलीप कुमार और उनकी टीम द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न की गई।

रोगी ने प्रारम्भ में मिज़ोरम के एक स्थानीय अस्पताल में अपने लक्षणों के बढ़ने पर परामर्श लिया, जहाँ चिकित्सकों ने उन्हें एओर्टिक एन्यूरिज़्म नामक स्थिति से पीड़ित पाया, यह महाधमनी (एओर्टा) में होने वाली गुब्बारे जैसी सूजन है, जो हृदय से पूरे शरीर में रक्त पहुंचाती है। यह सूजन समय के साथ चुपचाप बढ़ सकती है और अनुपचारित रहने पर फटने का जोखिम होता है, जिससे जानलेवा आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है। स्थिति की गंभीरता और जटिलता को देखते हुए, रोगी को विशेष उपचार के लिए मणिपाल अस्पताल, ईएम बाईपास में डॉ. दिलीप कुमार के पास भेजा गया।

पारंपरिक रूप से, इस स्थिति के उपचार के लिए पेट में बड़े चीरे लगाकर ओपन सर्जरी की आवश्यकता होती थी, जिसमें लंबा रिकवरी समय लगता था। लेकिन एंडोवेस्कुलर एओर्टिक रिपेयर एक अधिक सुरक्षित और तेज़ विकल्प है। इस तकनीक में जांघ के पास छोटे छिद्रों के माध्यम से स्टेंट-ग्राफ्ट (कपड़े और धातु से बना नलीनुमा उपकरण) को कमजोर हिस्से को सहारा देने और रक्त प्रवाह को सामान्य करने के लिए डाला जाता है, जिससे खुले पेट की सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती।

इस विशेष मामले में, डॉ. दिलीप कुमार और उनकी टीम ने रोगी की जांघ में दो फ़ेमोरल एक्सेस पॉइंट— 20F और 18F का उपयोग कर बाइफरकेटेड एओर्टिक ग्राफ्ट को इलिएक एक्सटेंशन्स सहित स्थापित किया। प्रक्रिया के अंत में पारंपरिक सर्जिकल टांकों की जगह पाँच क्लोज़र डिवाइसेस—चार प्रोग्लाइड और एक एंजियो-सील का उपयोग किया गया। इस उन्नत तकनीक से अत्यंत कम रक्तस्राव, तेज़ उपचार और असाधारण रूप से शीघ्र रिकवरी संभव हुई। उल्लेखनीय रूप से, रोगी अगले दिन ही चलने-फिरने लगे और उन्हें छुट्टी दे दी गई—यह संभवतः भारत का पहला मामला है जिसमें इतने बड़े-बोर एक्सेस रिपेयर के बाद पाँच क्लोज़र डिवाइसेस का उपयोग कर उसी दिन गतिशीलता और डिस्चार्ज संभव हुआ।

मामले के बारे में डॉ. दिलीप कुमार ने कहा, “यह अत्यंत उच्च जोखिम वाला मामला था, क्योंकि रोगी की मुख्य धमनी खतरनाक रूप से सूज चुकी थी और फटने का जोखिम था। पहले ऐसे मामलों में ओपन सर्जरी करनी पड़ती थी, लेकिन आधुनिक एंडोवेस्कुलर तकनीकों की मदद से अब हम बड़े चीरे की जगह छोटे छिद्रों से ही उपचार कर सकते हैं। इस मामले को विशेष बनाता है—दोनों ग्रोइन में बड़े कैथेटर डालने के बाद उन्हें बंद करने के लिए पाँच क्लोज़र डिवाइसेस का उपयोग। रोगी अगले दिन ही चल पाए और घर जा सके—यह हमारे लिए और रोगी के परिवार के लिए अत्यंत संतोषजनक है।”

प्रक्रिया के बाद रोगी की रिकवरी अत्यंत सहज रही और उन्होंने पूरी चिकित्सा टीम द्वारा दिए गए देखभाल और आश्वासन के लिए आभार व्यक्त किया। वह अब स्वस्थ हैं और अपनी स्थिति की निगरानी के लिए नियमित फॉलो-अप जारी रखेंगे।

यह सफल मामला दर्शाता है कि मणिपाल अस्पताल, ईएम बाईपास में उन्नत तकनीक और न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रियाओं की मदद से जटिल कार्डियोवैस्कुलर एवं वैस्कुलर विकारों का उपचार उच्च सटीकता, सुरक्षा और करुणा के साथ किया जा सकता है, जिससे रोगी शीघ्र स्वस्थ होकर सामान्य जीवन में लौट सकते हैं।

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Deshbandhu Singh is the Senior Managing Editor at Medical Dialogues and Health Dialogues with about three decades of experience in both print and digital journalism. Previously, he has held editorial leadership roles at NDTV (Head of Digital Content Strategy and Senior Executive Editor), India Today Group Digital, Hindustan Times, Times Internet, and Sahara India. He is known for his expertise in digital content strategy, newsroom operations, and the launch of leading web and mobile platforms in Indian media.