एम्स में मेटाबोलिक सर्जरी से बड़ी सफलता: 30 अनियंत्रित डायबिटीज मरीजों में शुगर नियंत्रण, दवाओं पर निर्भरता घटी

भारत में डायबिटीज के बढ़ते मामलों के बीच AIIMS नई दिल्ली ने अनियंत्रित टाइप-2 डायबिटीज (Uncontrolled T2DM) के इलाज में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। मेटाबोलिक सर्जरी के ज़रिये 30 ऐसे मरीजों में तेज़ और स्पष्ट सुधार देखा गया है, जिनमें वर्षों तक दवाइयाँ, डाइट और लाइफ़स्टाइल बदलाव के बावजूद शुगर नियंत्रित नहीं हो पा रही थी।
AIIMS के सर्जरी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मंजुनाथ मारुतिपोल ने बताया कि इन मरीजों में HbA1c, फास्टिंग व पोस्टप्रांडियल शुगर, ट्राइग्लिसराइड्स और प्रोटीन-यूरिया जैसे पैरामीटर उल्लेखनीय रूप से सुधरे हैं। कई मरीज दवाओं पर निर्भर हुए बिना ही सामान्य शुगर स्तर पर पहुँच गए हैं।
भारत “डबल एपिडेमिक” का सामना कर रहा है: डायबिटीज + अनियंत्रित डायबिटीज
डॉ. मंजुनाथ ने कहा कि भारत में डायबिटीज तो महामारी है ही, उससे भी बड़ा खतरा है अनियंत्रित डायबिटीज — जो चुपचाप देश में दूसरे बड़े एपिडेमिक की तरह फैल रही है। लोग अक्सर सोचते हैं कि डायबिटीज का मतलब सिर्फ “शुगर कम करना” है, लेकिन यह अधूरी समझ है। डायबिटीज के इलाज का असली लक्ष्य शुगर कम करना नहीं, ऑर्गन डैमेज रोकना है।
उन्होंने बताया कि अनियंत्रित डायबिटीज किडनी फेल्योर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, पैर कटने की नौबत, न्यूरोपैथी और अंधेपन जैसी गंभीर जटिलताओं का कारण बनती है।
Thin-Fat Indian: बाहर से दुबला, अंदर फैट से भरा शरीर
भारतीयों में “थिन फैट” बॉडी-टाइप बहुत आम है। यानी शरीर दिखने में दुबला लेकिन पेट के अंदर विसरल फैट बहुत। यही विसरल फैट डायबिटीज, हाई BP और लिपिड असमानताओं की जड़ है। 2025 के Lancet अध्ययन के मुताबिक: “BMI डायबिटीज जोखिम का सही संकेतक नहीं है, असली खतरा विसरल फैट है।”
कब कहा जाता है – “अनियंत्रित डायबिटीज”? (AIIMS प्रोटोकॉल)
- मरीज 3 या अधिक दवाइयाँ ले रहा हो
- HbA1c 7.5 से अधिक हो
- यह स्थिति कम से कम 2 वर्षों से बनी हो
डॉ. मंजुनाथ ने ऑर्गन फेल्योर की टाइमलाइन भी बेहद सरल शब्दों में समझाई:
- HbA1c 12–13 → 6 वर्षों में ऑर्गन डैमेज
- HbA1c 8 → 8 वर्षों में
- HbA1c 6.5 से नीचे → जोखिम लगभग 15 वर्षों तक टल सकता है
मेटाबोलिक सर्जरी क्या है? और यह पैंक्रियास पर क्यों नहीं होती?
उन्होंने साफ बताया: “यह सर्जरी पैंक्रियास पर नहीं, पेट और आंत पर होती है। यह मिथक तुरंत तोड़ देना चाहिए।”
सर्जरी में:
- पेट को छोटा किया जाता है.
- छोटी आंत को नई जगह जोड़ा जाता है.
- खाना डुओडेनम को बायपास कर आगे पहुँचता है.
इससे:
- GLP-1 हार्मोन प्राकृतिक तरह से रिलीज़ होते हैं
- एंटी-इंक्रीटिन रुकते हैं
- शुगर स्तर तेजी से नियंत्रित होते हैं
GLP-1 दवाओं की सीमाएँ बताते हुए उन्होंने कहा कि:
- इनसे कई बार प्रोटीन की कमी हो जाती है
- अनहेल्दी वज़न कम होता है
- HbA1c गिरावट सीमित रहती है
AIIMS में मरीजों को मिले चौंकाने वाले सुधार
उदाहरण 1:
15 साल का डायबिटीज, शुगर 390–400 इंसुलिन लेने से डर रहा था
सर्जरी के दिन ही शाम तक उसकी शुगर सामान्य हो गई।
उदाहरण 2:
HbA1c 11.7 → 3 महीनों में 7.6 वह भी बिना दवाइयों के
AIIMS का डेटा:
- 100 से अधिक सर्जरी
- उनमें से 35% केवल डायबिटीज मरीज
- प्रोटीन यूरिया सुधरी
- ट्राइग्लिसराइड्स सामान्य हुए
- रेटिनोपैथी की प्रोग्रेशन रुक गई
अनुभवी सर्जन और “डेडिकेटेड सेंटर” क्यों जरूरी?
डॉ. मंजुनाथ ने कहा: “आपको अनुभवी सर्जन और डेडिकेटेड सेंटर ही चुनना चाहिए।” उन्होंने एक उदाहरण दिया — एक मरीज जिसे केवल इसलिए महीनों तक उल्टियाँ होती रहीं क्योंकि उसने पोस्ट-सर्जरी प्रोटीन पाउडर बंद कर दिया था। दूसरे अस्पतालों में डॉक्टरों को यह जानकारी नहीं थी कि यह समस्या किस कारण हो रही है।
क्या डायबिटीज फिर लौट सकती है?
“यदि मरीज पुरानी जीवनशैली पर लौट आए तो हाँ… पर 95% मरीज ऐसा नहीं करते।” उन्होंने कहा कि मरीज इसे “दूसरा जन्म” मानते हैं और अनुशासन में रहते हैं।
उम्र सीमा:
- सर्जरी आमतौर पर 18–65 वर्ष
- कुछ विशेष मामलों में 16 वर्ष तक
AIIMS इस दिशा में लगातार काम कर रहा है ताकि अनकंट्रोल्ड डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों को समय पर समाधान मिल सके। डॉ. मंजुनाथ का कहना है कि
1. ऑर्गन डैमेज का इंतज़ार न करें।
2. उम्मीद मत छोड़ें — सर्जरी एक वैज्ञानिक विकल्प है।
3. यह पहला इलाज नहीं, पर जब दवाइयाँ विफल हों, तब यह जीवन बचा सकती है।


