60 वर्ष की उम्र के बाद शरीर के भीतर कई बदलाव तेज़ी से होने लगते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, इस आयु वर्ग में लगभग 60–70% बीमारियाँ ऐसी होती हैं जो शुरुआती दौर में बिना लक्षण के रहती हैं।

यही वजह है कि नियमित मेडिकल जाँच को केवल बीमारी होने पर नहीं, बल्कि बीमारी से पहले की सुरक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए। सही समय पर जाँच से न सिर्फ जीवन प्रत्याशा बढ़ती है, बल्कि बुज़ुर्गों की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता भी बनी रहती है।

हाई ब्लड प्रेशर इस उम्र की सबसे आम लेकिन सबसे ख़तरनाक समस्या है। भारत में किए गए अध्ययनों के मुताबिक, 60 साल से ऊपर के हर 2 में से 1 व्यक्ति हाई बीपी से प्रभावित है, लेकिन उनमें से बड़ी संख्या को इसका पता ही नहीं होता।

अनियंत्रित रक्तचाप दिल के दौरे, स्ट्रोक और किडनी फेल्योर का जोखिम 2–3 गुना तक बढ़ा देता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि 60 के बाद साल में कम से कम एक बार बीपी की जाँच अनिवार्य होनी चाहिए।

इसी तरह कैंसर स्क्रीनिंग इस उम्र में जीवन रक्षक साबित हो सकती है। डेटा बताता है कि कोलन कैंसर के 90% मामलों में समय पर जाँच से जान बचाई जा सकती है।

महिलाओं में स्तन कैंसर की घटनाएँ 60 के बाद बढ़ती हैं, इसलिए हर 1–2 साल में मैमोग्राफी ज़रूरी मानी जाती है। पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है, जिस पर डॉक्टर व्यक्तिगत जोखिम के आधार पर जाँच की सलाह देते हैं।

60 साल के बाद ज़रूरी जाँचें (तथ्यों के साथ):

  • बोन डेंसिटी टेस्ट — WHO के अनुसार, 65 के बाद हर 3 में से 1 महिला और हर 5 में से 1 पुरुष को ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा होता है।
  • कोलेस्ट्रॉल जाँच — हाई कोलेस्ट्रॉल हृदय रोग का प्रमुख कारण है; नियमित जाँच से हार्ट अटैक का जोखिम 25–30% तक घटाया जा सकता है।
  • ब्लड शुगर टेस्ट — भारत में 60+ उम्र के लगभग 30% लोग डायबिटीज़ या प्रीडायबिटीज़ से ग्रस्त हैं।
  • किडनी फंक्शन टेस्ट — उम्र के साथ किडनी की कार्यक्षमता स्वाभाविक रूप से घटती है, जिसे समय रहते नियंत्रित किया जा सकता है।
  • आँखों की जाँच — 60 के बाद मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के मामले तेजी से बढ़ते हैं, लेकिन शुरुआती इलाज से अंधेपन से बचाव संभव है।

सुनने की क्षमता में गिरावट भी इस उम्र में आम है। आंकड़ों के अनुसार, 65 वर्ष के बाद हर 3 में से 1 व्यक्ति को किसी न किसी स्तर की सुनने की समस्या होती है।

समय पर जाँच और हियरिंग एड न केवल संवाद बेहतर बनाते हैं, बल्कि डिप्रेशन और सामाजिक अलगाव के खतरे को भी कम करते हैं। इसी तरह नियमित नेत्र परीक्षण बुज़ुर्गों की सुरक्षा और आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद करता है।

अन्य ज़रूरी जाँच और बचाव :

  • टीकाकरण — फ्लू और न्यूमोकोकल संक्रमण 60+ उम्र में अस्पताल में भर्ती होने का बड़ा कारण हैं; वैक्सीन से जोखिम 50% तक घटता है।
  • त्वचा और दाँतों की जाँच — स्किन कैंसर के 80% मामलों में शुरुआती पहचान से इलाज संभव है।
  • थायरॉइड जाँच — 60+ उम्र की महिलाओं में थायरॉइड विकार पुरुषों से लगभग 3 गुना अधिक पाए जाते हैं।
  • एब्डॉमिनल एओर्टिक एन्यूरिज़्म स्क्रीनिंग — धूम्रपान करने वाले बुज़ुर्ग पुरुषों में अचानक जानलेवा स्थिति से बचाव के लिए यह जाँच अहम है।

कुल मिलाकर, 60 साल के बाद मेडिकल जाँच कोई डरावनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक समझदारी भरा निवेश है। विशेषज्ञ मानते हैं कि नियमित स्क्रीनिंग से बुज़ुर्गों में गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने की दर 30–40% तक कम की जा सकती है। सही जाँच, समय पर इलाज और स्वस्थ जीवनशैली मिलकर बढ़ती उम्र को बोझ नहीं, बल्कि एक सक्रिय और सम्मानजनक चरण बना सकती है।

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60 की उम्र के बाद नियमित मेडिकल जाँच से बीमारियों की समय पर पहचान, बेहतर इलाज और स्वस्थ, सक्रिय जीवन संभव है।
Stuti Tiwari
Stuti Tiwari

Stuti Tiwari joined Medical Dialogues in 2025 as a Hindi Content Writing Intern. She is currently pursuing a Bachelor’s degree in Journalism from the University of Delhi. With a strong interest in health journalism, digital media, and storytelling, Stuti focuses on writing, editing, and curating Hindi health content. She works on producing informative, engaging, and accurate articles to make healthcare news and updates more understandable and relatable for Hindi-speaking audiences.