विश्व AIDS दिवस 2025: सरकार का लक्ष्य—2030 तक HIV को स्वास्थ्य संकट की सूची से बाहर करना

हर साल 1 दिसंबर को विश्व AIDS दिवस मनाया जाता है — यह वो दिन है जब पूरी दुनिया HIV/AIDS से खोए लोगों को याद करती है और उन लाखों लोगों के साथ एकजुटता दिखाती है जो आज भी HIV के साथ जी रहे हैं। इस साल की थीम है: “Overcoming disruption, transforming the AIDS response”, यानी झटकों को पार करने और HIV के खिलाफ लड़ाई को और मजबूत करने का संकल्प।
भारत ने इस मौके पर HIV/AIDS के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि 2030 तक HIV को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में खत्म करने का लक्ष्य पूरी ताक़त से जारी है। यह संकल्प केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है।
भारत की HIV-रोधी यात्रा लगभग चार दशक पुरानी है। शुरुआत 1980 के दशक में जागरूकता और सुरक्षित रक्तदान पर ज़ोर देकर हुई। इसके बाद 1992 में National AIDS Control Programme (NACP) शुरू हुआ, जो आज दुनिया के सबसे संगठित HIV नियंत्रण कार्यक्रमों में से एक माना जाता है।
समय के साथ NACP पाँच चरणों (NACP-I से NACP-V) में आगे बढ़ा है—जहाँ ध्यान सिर्फ रोकथाम और टेस्टिंग तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब इलाज, परामर्श, सामाजिक सुरक्षा और अधिकारों तक विस्तार हो चुका है।
2017 में लाया गया HIV/AIDS (Prevention & Control) Act इस लड़ाई का बड़ा कदम था। यह कानून HIV पॉज़िटिव लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है और भेदभाव को अपराध मानता है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में “ओम्बड्समैन” भी नियुक्त किए गए हैं, जो भेदभाव से जुड़े मामलों को देखते हैं।
वर्तमान NACP-V (2021–2026) के लिए केंद्र सरकार ने 15,470 करोड़ रुपये से अधिक की राशि मंज़ूर की है। इसका लक्ष्य है—2030 तक HIV संक्रमण को नियंत्रण में लाना और नए मामलों को तेज़ी से गिरावट में रखना।
इसी दिशा में देशभर में बड़े स्तर पर अभियान चलाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया, रेडियो व डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जागरूकता बढ़ाई जा रही है। गांवों और कस्बों तक पहुंचने के लिए Self-Help Groups, ASHA और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को जोड़ा गया है। 1,587 से अधिक Targeted Intervention Projects भी चल रहे हैं, जो हाई-रिस्क समूहों तक नियमित जागरूकता, टेस्टिंग और इलाज की सुविधा पहुंचाते हैं।
विश्व AIDS दिवस 2025 यह याद दिलाता है कि HIV केवल एक चिकित्सा चुनौती नहीं है — यह सामाजिक, मानसिक और सामुदायिक लड़ाई भी है। भारत ने एक बार फिर साफ किया है कि यह लड़ाई अधूरी नहीं है, और आने वाले सालों में इसे और तेज़ किया जाएगा।


