यूपी के एक गाँव में अंतिम संस्कार के भोजन से कैसे फैली रेबीज की दहशत, लगभग 200 लोगों को लगवाना पड़ा टीका

यूपी के एक गाँव में अंतिम संस्कार के दौरान परोसे गए भोजन के बाद रेबीज के डर से करीब 200 लोगों ने एहतियातन टीकाकरण कराया।
बदायूं, उत्तर प्रदेश — पिपरौली गांव में उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब एक सामान्य अंतिम संस्कार के भोजन के बाद रेबीज संक्रमण की आशंका जताई गई। एहतियात के तौर पर लगभग 200 ग्रामीणों ने एंटी-रेबीज टीकाकरण करवाया।
यह मामला पिछले सप्ताह गांव में आयोजित तेरहवीं (मृत्यु के 13वें दिन का संस्कार) से जुड़ा है। इस दौरान शोक में शामिल लोगों को भोजन परोसा गया था, जिसमें रायता भी शामिल था। स्थानीय लोगों के अनुसार, रायते में इस्तेमाल किया गया दही उस भैंस के दूध से बना था, जो कुछ दिनों बाद बीमार पड़कर मर गई। बताया गया कि उस भैंस को कुछ दिन पहले एक आवारा कुत्ते ने काटा था, जिससे ग्रामीणों को शक हुआ कि कहीं भैंस को रेबीज तो नहीं हो गया।
भैंस की मौत की खबर फैलते ही गांव में डर का माहौल बन गया। लोगों को आशंका हुई कि कहीं भोजन के जरिए रेबीज वायरस शरीर में न चला गया हो। घबराए ग्रामीण नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंच गए और तुरंत टीकाकरण की मांग करने लगे। स्वास्थ्य केंद्रों पर लंबी कतारें देखी गईं।
हालांकि, स्वास्थ्य अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह टीकाकरण सिर्फ एहतियातन किया गया है, न कि किसी पुष्टि किए गए संक्रमण के कारण।
एक वरिष्ठ जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा,
“रेबीज मुख्य रूप से संक्रमित जानवर के काटने या उसकी लार के जरिए, त्वचा के घाव या म्यूकस मेम्ब्रेन के संपर्क से फैलता है। पके हुए भोजन, उबले दूध, दही या रायते से रेबीज फैलने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।”
बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद, अधिकारियों ने लोगों की मानसिक शांति के लिए टीकाकरण करने का फैसला किया। उन्होंने कहा,
“जनस्वास्थ्य में लोगों की धारणा भी मायने रखती है। जब लोग चिंतित होते हैं, तो एहतियाती कदम भरोसा बहाल करने में मदद करते हैं।”
चिकित्सा टीमों ने ग्रामीणों में किसी भी लक्षण की निगरानी की और रेबीज से जुड़े भ्रम दूर करने के लिए जागरूकता सत्र भी आयोजित किए। अब तक इस घटना से जुड़े किसी भी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण नहीं पाए गए हैं।
विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि रेबीज यदि बिना इलाज के छोड़ दिया जाए तो जानलेवा हो सकता है, लेकिन यह भोजन या डेयरी उत्पादों से नहीं फैलता। एक सरकारी महामारी विशेषज्ञ ने कहा,
“यह वायरस पकाने या फर्मेंटेशन की प्रक्रिया में जीवित नहीं रहता। ऐसे मामले दिखाते हैं कि जूनोटिक बीमारियों को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।”
जिला प्रशासन ने भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए आसपास के इलाकों में आवारा कुत्तों की निगरानी और टीकाकरण अभियान भी शुरू कर दिया है। फिलहाल पिपरौली गांव की स्थिति सामान्य और नियंत्रण में बताई जा रही है, लेकिन इस घटना ने यह जरूर दिखा दिया है कि गलत जानकारी कैसे तेजी से सामूहिक दहशत में बदल सकती है।


