नई दिल्ली: भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री सबसे तेज़ी से बढ़ रही है। इस बदलती खाने की आदत के कारण मोटापा और डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है। यह जानकारी द लैंसेट में बुधवार को प्रकाशित तीन शोध पत्रों की सीरीज़ में दी गई है।

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड ऐसे पैक्ड खाद्य पदार्थ होते हैं जिनमें ज्यादा मात्रा में तेल, चीनी और नमक होता है। इनमें स्टेबलाइज़र, कलर, फ्लेवर जैसे कई ऐसे मिलावट वाले तत्व भी होते हैं जो सेहत के लिए हानिकारक माने जाते हैं। इनका ज़्यादा सेवन मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज, दिल की बीमारियों, तनाव और समय से पहले मौत का खतरा बढ़ाता है।

शोध पत्रों के अनुसार भारत में UPF की रिटेल बिक्री 2006 में 0.9 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में लगभग 38 बिलियन डॉलर पहुंच गई — यानी करीब चालीस गुना वृद्धि।

आज दुकानों की अलमारियां नमकीन, नूडल्स, बिस्किट, शर्करा वाले पेय, चिप्स और ब्रेकफास्ट सीरियल जैसे पैक्ड उत्पादों से भरी रहती हैं। इनका विज्ञापन बच्चों और युवाओं को लगातार इनकी ओर आकर्षित कर रहा है।

इसी के कारण भारत में मोटापे के मामले भी दोगुने हो गए हैं — पुरुषों में 12% से 23% और महिलाओं में लगभग 15% से बढ़कर 24% तक।

सीरीज़ में कहा गया कि UPF कंपनियां आक्रामक मार्केटिंग और विज्ञापनों के जरिए इनके उपभोग को बढ़ावा दे रही हैं।

“हमारे नियम इन विज्ञापनों पर रोक लगाने में बहुत कमज़ोर हैं। भारत को तुरंत कदम उठाने की ज़रूरत है ताकि UPF का सेवन कम हो सके और आने वाले सालों में मोटापा व डायबिटीज को रोका जा सके। देश में UPF की सबसे तेज़ बिक्री और इसके खराब स्वास्थ्य प्रभावों को देखते हुए इसे स्वास्थ्य की प्राथमिक चिंता माना जाना चाहिए,” सीरीज़ के सह-लेखक और बाल विशेषज्ञ डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा।

लेखकों ने UPF से निपटने और बेहतर खानपान को बढ़ावा देने के लिए मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य कदमों की अपील की।

उनका कहना है कि सिर्फ लोगों के व्यवहार बदलने की कोशिश काफी नहीं है। सरकार को उत्पादन, प्रचार और बिक्री पर नियंत्रण की नीतियां बनानी होंगी और स्वस्थ भोजन को सुलभ बनाना होगा।

PHFI यूनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ साइंसेज के चांसलर प्रो. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, “भारत को इनके उत्पादन और विज्ञापन पर सख्त नियम लागू करने चाहिए। पैक पर चेतावनी लेबल होने चाहिए ताकि उपभोक्ता जान सकें कि किसी उत्पाद में नमक, चीनी और तेल कितना ज्यादा है।”

उन्होंने कहा, “इन उत्पादों को अक्सर आकर्षक तरीके से पेश किया जाता है, जिससे लोग इन्हें आदत बना लेते हैं। इसलिए इनके विज्ञापन और स्पॉन्सरशिप पर रोक लगनी चाहिए, खासकर जब मशहूर हस्तियों का इस्तेमाल प्रचार में किया जाता है।”

Stuti Tiwari
Stuti Tiwari

Stuti Tiwari joined Medical Dialogues in 2025 as a Hindi Content Writing Intern. She is currently pursuing a Bachelor’s degree in Journalism from the University of Delhi. With a strong interest in health journalism, digital media, and storytelling, Stuti focuses on writing, editing, and curating Hindi health content. She works on producing informative, engaging, and accurate articles to make healthcare news and updates more understandable and relatable for Hindi-speaking audiences.