नई दिल्ली: आज के प्रतियोगी माहौल में बच्चे लगातार तनाव में रहते हैं। AIIMS के मनोचिकित्सा विभाग के प्रो. राजेश सागर के अनुसार, बच्चों में मानसिक परेशानियों के बीज अक्सर 14 साल से पहले ही पड़ जाते हैं, लेकिन स्कूल और घर दोनों ही इन संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं।

स्कूल का भारी सिलेबस, होमवर्क और हर विषय में अच्छे अंक लाने का दबाव बच्चों पर मानसिक बोझ डालता है। कई बच्चे पढ़ाई में पीछे रहने के डर से तनाव झेलते हैं। प्रो. सागर कहते हैं, “हम सिर्फ नंबर देखते हैं, लेकिन यह नहीं कि बच्चा कैसा महसूस कर रहा है। यही अनदेखी मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा असर डालती है।”

अत्यधिक तनाव से बच्चों में चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, ध्यान भटकना, स्कूल से बचना या छोटी-छोटी बातों पर रोना जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। परिवार में तुलना और आलोचना से आत्मविश्वास कमजोर होता है। लंबे समय तक यह चिंता, अवसाद और सामाजिक अलगाव का कारण बन सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि केवल पढ़ाई पर जोर देने की बजाय बच्चों की भावनाओं, रुचियों और क्षमताओं को समझना जरूरी है। घर में बातचीत का माहौल बनाएं, बच्चों की सुनें और उनकी खूबियों की तारीफ करें। परीक्षा के समय शांत रहकर उनका भरोसा बढ़ाएँ।

प्रो. सागर के अनुसार, नियमित खेल-कूद, हॉबीज़, पर्याप्त नींद और स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण बच्चों की मानसिक सेहत के लिए जरूरी है। स्कूल और घर मिलकर ऐसा वातावरण बनाएं जहाँ बच्चे की खुशी, आत्मविश्वास और मानसिक सुरक्षा ही प्राथमिकता हो।

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बढ़ती पढ़ाई का दबाव बच्चों में तनाव, चिंता और मानसिक थकान बढ़ा रहा है। संतुलित माहौल, खेल और भावनात्मक सपोर्ट बेहद जरूरी है।
Stuti Tiwari
Stuti Tiwari

Stuti Tiwari joined Medical Dialogues in 2025 as a Hindi Content Writing Intern. She is currently pursuing a Bachelor’s degree in Journalism from the University of Delhi. With a strong interest in health journalism, digital media, and storytelling, Stuti focuses on writing, editing, and curating Hindi health content. She works on producing informative, engaging, and accurate articles to make healthcare news and updates more understandable and relatable for Hindi-speaking audiences.