मोटापे से लेकर पुरानी खांसी तक में राहत दे सकता है अपामार्ग का पौधा

नई दिल्ली, (आईएएनएस): भारत के ग्रामीण इलाकों, खेतों और खाली ज़मीनों पर सहज रूप से उगने वाला अपामार्ग, जिसे चिरचिटा भी कहा जाता है, एक अत्यंत गुणकारी औषधीय पौधा है। आयुर्वेद में इस पौधे का विशेष स्थान है क्योंकि इसके तना, पत्तियां, जड़, बीज और फूल—यानि पूरा पंचांग—औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के अनुसार, अपामार्ग का उपयोग कई गंभीर और सामान्य बीमारियों के उपचार में किया जाता रहा है।
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार, अपामार्ग मोटापा, गठिया, बवासीर, अस्थमा, किडनी की पथरी, खांसी, दमा और पाचन संबंधी विकारों में लाभकारी है। यह पौधा मुख्य रूप से दो प्रकार का पाया जाता है—सफेद और लाल अपामार्ग। इनमें सफेद अपामार्ग को अधिक प्रभावशाली और श्रेष्ठ माना गया है। इसका पौधा सामान्यतः 60 से 120 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 5 इंच लंबी होती हैं, जबकि फूलों की मंजरी लगभग एक फुट तक लंबी हो सकती है।
अपामार्ग वर्षा ऋतु में उगता है और गर्मियों में सूख जाता है। इसका स्वाद कड़वा होता है, लेकिन औषधीय दृष्टि से यह पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, दर्द निवारक, विषनाशक और कृमिनाशक गुणों से युक्त है। आयुर्वेद में इसे शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक माना गया है।
गठिया की समस्या में इसकी ताज़ी पत्तियों को पीसकर हल्का गर्म करके लगाने से दर्द और सूजन में राहत मिलती है। वहीं, इसकी जड़ का काढ़ा काली मिर्च के साथ सेवन करने से पित्त दोष संतुलित होता है और किडनी की पथरी टूटकर बाहर निकलने में मदद मिलती है। अपामार्ग के बीजों का नियमित सेवन भूख को नियंत्रित करता है, जिससे चर्बी कम होती है और वजन संतुलन में रहता है।
इसकी जड़ का चूर्ण शहद के साथ लेने से पुरानी खांसी, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता है। पत्तियों के रस को दांतों पर लगाने से दंत क्षय यानी कैविटी भरने में सहायता मिलती है। वहीं, इसकी जड़ का लेप या पंचांग के काढ़े से स्नान करने पर सिरदर्द, खुजली और त्वचा संबंधी परेशानियों में आराम मिलता है।
इसके अतिरिक्त अपामार्ग का उपयोग लकवा, मलेरिया, कमजोरी, पेट की मांसपेशियों की ढीलापन, तथा संतान प्राप्ति में सहायक उपचार के रूप में भी किया जाता है। हालांकि, इसके शक्तिशाली औषधीय गुणों को देखते हुए इसका उपयोग किसी योग्य वैद्य या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए, ताकि सही मात्रा और विधि से इसका लाभ सुरक्षित रूप से प्राप्त किया जा सके।


